देहरादून, 23 जून। उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कांग्रेस में कोविड से निपटने की रणनीति से लेकर ई-वेस्ट के निस्तारण और फसलों का उत्पादन बढ़ाने जैसी नई तकनीकों पर विस्तार से चर्चा हुई।
यूकोस्ट के तत्वावधान में ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित 15 व 16वीं उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कांग्रेस का आज दूसरा दिन था। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कांग्रेस में देशभर से आये विशेषज्ञों ने विभिन्न प्रकार की चुनौतियों और उनसे बेहतरीन ढंग से निपटने के वैज्ञानिक तरीकों पर विस्तार से चर्चा की।
वैज्ञानिकों ने कोविड महामारी से दुनिया भर में मची तबाही का उल्लेख करते हुए कहा कि कोरोना ने हमें कई सबक दिए हैं। दवाओं को लेकर कई तरह के मतभेदों के बावजूद कोविड ने सिखाया है कि उपचार के लिए केवल एक पद्धति पर निर्भर रहने के बजाय हमें इम्युनिटी बढ़ाने और बचाव के दूसरे तरीकों को भी उपयोग में लेना चाहिए। ये सही समय है कि हमें ऐसी परिस्थितियों के लिए परम्परागत आयुर्वेद पर हुए अध्ययनों और साक्ष्यों से प्रमाणित आयुर्वेद का भी लाभ उठाना चाहिए।
वैज्ञानिकों ने कहा कि समाज, सरकार और प्रशासन को वैज्ञानिक तरीकों से ऐसी आपदाओं से निपटने की तैयारी करके उसे अमल में लाना चाहिए। ऐसी आपदाओं और संक्रमण के समय में पूरे समाज को सामाजिक और व्यक्तिगत तौर पर आगे आकर योगदान देना चाहिए।
2nd Day of UCOST State Science & Technology Congress – organized at Graphic Era University. pic.twitter.com/DGtbCxmAmI
— Rainbow News (@RainbowNewsUk) June 23, 2022
तकनीकी सत्र में आपदाओं से निपटने के लिए मजबूत हैल्थ केयर इंफ्रास्टैचर और उसका बेहतर उपयोग करने की व्यवस्था पर ध्यान देने की जरूरत बताई। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कांग्रेस में किसी आपदा के दौर में प्रवासी मजदूरों को परेशानियों से बचाने और व्यावसायिक गतिविधियों को जारी रखने की व्यवस्थाएं पहले से तैयार रखने पर जोर दिया। विशेषज्ञ वक्ताओं ने आपदा के दौर में किसानों, गरीबों और प्रभावित लोगों की मदद के लिए उठाये गए कदमों का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को सराहा।
सी.एस.आई.आर. की इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायो रिसोर्स टेक्नोलॉजी के निदेशक डॉ संजय कुमार ने विज्ञान कांग्रेस में कहा कि हिमालय क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों का वैज्ञानिक तरीकों से उपयोग करके बायो इकोनॉमी में क्रांतिकारी बदलाव लाए जा सकते हैं। उन्होंने अपने अनुभव बताते हुए कहा कि एग्रो टेक्नोलॉजी के उपयोग से स्टीविया, केसर, हींग, इलायची जैसी फसलों का उत्पादन बहुत बढ़ जाता है। हिमालय के कोल्ड डेजर्ट लाहौल में लिलियम उगाने और मिजोरम सेब का उत्पादन करने में कामयाबी मिली है। इससे किसानों की आय परंपरागत फसलों के मुकाबले पांच गुनी बढ़ गई है। लाहौल में ट्यूलिप की खेती शुरू करने से पर्यटकों की संख्या भी बढ़ गई है।
वैज्ञानिकों ने कहा कि देश में आठ लाख टन से ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट हर साल पैदा हो रहा है। ई-वेस्ट को कम करने के लिए लोगों को जागरूक करने और उपयोग शुदा बल्ब, ट्यूबलाइट को ठीक करना सिखाने के बहुत अच्छे परिणाम निकल सकते हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कांग्रेस में हिमालय क्षेत्र में पर्यावरण के बदलाव से जल स्रोतों को बचाने के लिए जागरूकता लाने और तकनीकों के उपयोग पर जोर दिया गया।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कांग्रेस के दूसरे दिन आज ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी में 14 स्थानों पर वैज्ञानिक व तकनीकी सत्र आयोजित किए गए। इनमें कृषि विज्ञान, बायोटेक्नोलॉजी, बॉटनी, केमिस्ट्री, इंजीनियरिंग साइंस एंड टेक्नोलॉजी, पर्यावरण विज्ञान एवं वानिकी, मेडिकल साईंस, मैटेरियल साईंस और नैनो टेक्नोलॉजी जैसे विषयों पर विशेषज्ञों ने विस्तार से चर्चा की। विज्ञान कांग्रेस में बीएचयू प्रो जितेंद्र सिंह वोहरा, कुरूक्षेत्र यूनिवर्सिटी से प्रो. सुमन सिंह, दिल्ली यूनिवर्सिटी से प्रो एस बी बब्बर, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के डॉ वीरेंद्र सिंह राणा, अटल बिहारी वाजपेई इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट, ग्वालियर के डॉ एस एन सिंह, पेटेंट सेंटर के निदेशक डॉ यशवंत पंवार, मैडी कैप्स यूनिवर्सिटी, इंदौर के प्रो एस डी उपाध्याय, जेएनयू के प्रो पवन कुमार जोशी, पंजाब यूनिवर्सिटी के प्रो. विनय कंवर, कोलकाता के डॉ कैलाश चंद्र, दिल्ली के प्रो. बेनीधर देशमुख, डीएसटी की वैज्ञानिक डॉ रजनी रावत समेत देश के प्रमुख वैज्ञानिक और विशेषज्ञ शिरकत कर रहे हैं।
रूरल टेक्नोलॉजी एवं साइंस पापुलराइजेशन के स्टेशन में मुख्य व्याख्या डॉ० एके जोशी अधिष्ठाता वाईएस परमार यूनिवर्सिटी ऑफ हॉर्टिकल्चर सोलन ने दिया अपने व्याख्यान में उन्होंने बताया कि प्रत्येक पंचायत का पार्टिसिपेट इन रूरल अप्रेजल के द्वारा रोड मैप बनना चाहिए।इससे गांव में ही रोजगार सृजन होगा तथा युवकों को स्थानीय स्तर पर ही आय के साधन जुटाने के साथ-साथ गांव में उपलब्ध संसाधनों का भरपूर उपयोग करने का अवसर मिलेगा तथा गांव में जो बंजर भूमि खाली पड़ी है उसका उपयुक्त प्रयोग भी जंगली जानवरों से बचाव कर सकता है हॉर्टिकल्चर के क्षेत्र में आए कमाने के संसाधन है नई-नई तकनीकों का प्रयोग करके गांव वाले हॉर्टिकल्चर के माध्यम से राष्ट्रीय आय में अच्छा योगदान कर सकते हैं।
डॉ० कैलाश चंद्रा, भूतपूर्व निदेशक – भारतीय प्राणी सर्वेक्षण संस्थान ने लॉन्ग टर्म इकोलॉजिकल मॉनिटरिंग द्वारा हिमालयी क्षेत्रों में जैव विविधता के मूल्यांकन के बारे में बताया। साथ ही उन्होंने कीटों के संभावित जैव संकेतन के रूप में प्रयोग और डीएनए बारकोडिंग पर जानकारी दी। एक सत्र में यशवंत पंवार ने पेटेंटिंग और इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि कैसे नवाचार को अनुसंधान से जोड़ा जा सकता है?
एक शोधार्थी ने हाई सिस्मीसिटी रेट पर जानकारी देते हुए भूकंप के एक नए फोरकास्ट मॉडल के बारे में शोध प्रस्तुत किया। एक अन्य शोधार्थी ने वायु प्रदूषण के रहते वानस्पतिक प्रजातियों के अडॉप्टेशन पर शोध कार्य प्रस्तुत किया। साथ ही अन्य शोध में अतिवृष्टि और ओलावृष्टि का राडार के माध्यम से पूर्वानुमान पर शोध मॉडल प्रस्तुत किया गया।
प्रो० जीतेन्द्र सिंह ने ऑर्गनिक फार्मिंग और लैंड होल्डिंग के नए तरीकों से खाद्य उत्पादन बढ़ाकर खाद्य सुरक्षा उपायों के बारे में जानकारी दी गई।
एक शोधार्थी ने हिमालयी क्षेत्र की बद्री गाय के गोमूत्र के औषधीय गुणों के बारे में बताया गया। एक अन्य शोधार्थी ने बार्किंग डिअर पर किये गए अध्ययन को प्रस्तुत किया गया और बताया गया की इसे एक सब स्पीशीज के रूप में रखकर अध्ययन किया जाना चाहिए।
एम्स ऋषिकेश के डॉ० विशाल मागो ने आर्टिफिशियल स्किन के विकसित किये जाने संबंधी शोध पत्र प्रस्तुत किया उन्होंने बताया कि भारत में आर्टिफिशियल स्किन विकसित की गई हैं और इसका परीक्षण चूहों पर सफलतापूर्वक किया गया है।
यूकोस्ट के महानिदेशक डॉ० राजेंद्र डोभाल, ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ० एच एन नागराजा और महानिदेशक डॉ० संजय जसोला भी कांग्रेस के दूसरे दिन का आयोजनों में शामिल रहे। इस अवसर पर ग्राफिक एरा के छात्र-छात्राओं ने रंगारंग कार्यक्रम की प्रस्तुति देकर विभिन्न संस्कृतियों की झलक भी दिखाई।
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