रेनबो न्यूज़ इंडिया* 5 जुलाई 2022
कांग्रेस की उत्तराखंड इकाई के अध्यक्ष करन माहरा ने सोमवार को वरिष्ठ पार्टी नेताओं हरीश रावत और प्रीतम सिंह से सोशल मीडिया पर एक-दूसरे को निशाना नहीं बनाने की अपील करते हुए कहा कि इससे पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता है ।
माहरा ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘ दोनों मेरे वरिष्ठ हैं । पार्टी में हर किसी को अपना दृष्टिकोण रखने का अधिकार है । मेरी उनसे अपील है कि उन्हें जो कुछ भी कहना है, वे पार्टी फोरम पर कहें और सोशल मीडिया पर एक-दूसरे को निशाना न बनाएं ।’’
उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद से पार्टी कार्यकर्ताओं में निराशा का भाव है ।
माहरा ने कहा, ‘‘ ऐसी स्थिति में वरिष्ठ पार्टी नेताओं के बीच सोशल मीडिया पर झगड़ा उनका मनोबल तोड़ देता है । उन्हें जमीनी स्तर के साधारण कार्यकर्ताओं के बारे में सोचना चाहिए और अपने मसलों को उचित पार्टी फोरम पर उठाना चाहिए ।’’
पूर्व मुख्यमंत्री रावत और राज्य विधानसभा में पूर्व नेता प्रतिपक्ष एवं चकराता विधायक सिंह के बीच टि्वटर तथा अन्य सोशल मीडिया मंचों पर जुबानी जंग चल रही है जिसमें दोनों एक-दूसरे पर परोक्ष रूप से प्रहार कर रहे हैं ।
अपने एक पोस्ट में रविवार को रावत ने कहा कि राज्य के लोकतांत्रिक इतिहास में एक शानदार अध्याय पर केवल एक व्यक्ति की ओर दुर्भावना के चलते काली स्याही पोत देना ठीक नहीं है ।
पूर्व मुख्यमंत्री परोक्ष रूप से सिंह की उस टिप्पणी का जवाब दे रहे थे जिसमें उन्होंने कहा था कि 2016 में रावत के खिलाफ पार्टी विधायकों की बगावत के लिए केवल वह ही जिम्मेदार थे जिससे राज्य में कुछ समय के लिए राष्ट्रपति शासन भी लगा ।
रावत ने कहा कि 2016 में सदन में शक्ति परीक्षण के जरिए उनकी सरकार का बहाल होना लोकतंत्र की जीत थी ।
उन्होंने कहा कि 2016 में उत्तराखंड में पार्टी विधायकों का दल-बदल भाजपा ने करवाया था जो ऐसा पहले असम और अरूणाचल प्रदेश में भी कर चुकी थी ।
पूर्व में भी दोनों नेता पार्टी की हार के लिए एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा चुके हैं । रावत ने इससे पहले कहा था कि उन्होंने विधानसभा चुनाव में मिली हार की जिम्मेदारी पार्टी के चुनाव अभियान का प्रमुख होने के नाते ली थी लेकिन हर सामाजिक समारोह में गाहे-बगाहे उन्हें पार्टी के खराब प्रदर्शन का दोषी ठहराया जाना ठीक नहीं है ।
सिंह प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष हैं और वरिष्ठ नेता इंदिरा ह्रदयेश के निधन के बाद उन्हें राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष नियुक्त किया गया था । हालांकि, पार्टी की हार के बाद प्रदेश में हुए संगठनात्मक बदलाव में उन्हें कोई पद नहीं दिया गया ।
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