रेनबो न्यूज़ इंडिया* 31अगस्त 2022
पहाड़ों में शादी समारोह और अन्य आयोजनों में मालू के पत्तों में भोजन परोसने की परम्परा रही है। वर्तमान में प्लास्टिक व थर्माकोल के दोने और पत्तलों ने पुरानी परम्परा को समाप्त कर दिया है। इसको देखते हुए रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी और अन्य स्वयं सहायता समूहों ने प्रकृति से भरपूर मालू के पत्तों के चलन पर जोर दिया है। सितंबर से केदारनाथ घाटी के कई पड़ावों में स्थित होटलों और रेस्टोरेंटों में दिखाई देगा, जिससे केदारनाथ घाटी में फैल रहे प्लास्टिक के कचरे को रोकने में मदद भी मिलेगी।
जिलाधिकारी रुद्रप्रयाग मयूर दीक्षित व अन्य स्थानीय स्वयं सहायता समूह मालू के पत्तों के चलन पर जोर दे रहे हैं। इसके लिए जिला प्रशासन ने केदारनाथ घाटी के विभिन्न पड़ावों पर मालू के पत्तों के प्रयोग के लिए जनजागरण की कवायद शुरू कर दी है। इसके चलते केदारनाथ धाम के दर्शनों के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को अब विभिन्न पड़ावों पर स्थित होटलों व रेस्टोरेंटों द्वारा मालू के पत्तों में भोजन परोसा जाएगा। इसे संभवतः सितंबर से प्रारंभ किया जाएगा। मालू का पत्ता भोजन को अधिक स्वादिष्ट बनाने के साथ ही स्वास्थ्य के लिए लाभदायक भी माना जाता है।
मालू के पत्ते में है औषधीय गुण
मालू उत्तराखंड में निम्न ऊंचाई से मध्य ऊंचाई तक के जंगलों में बेल पर लगा पाया जाता है। यह वैज्ञानिक रूप से फैबेसी कुल का पौधा है। इसमें एंटी बैक्टीरियल तत्व पाए जाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार प्राकृतिक पत्तों में भोजन करने से उसके औषधीय गुण हमारे स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाते है। प्राचीन समय में मालू का इस्तेमाल अतिसार व बुखार के दौरान टॉनिक के रूप में किया जाता था। जिसमें कई रासायनिक तत्व पाये जाते हैं। मालू के पौष्टिक गुणों की बात की जाये तो इसमें 24.59 प्रतिशत प्रोटीन, 6.21 प्रतिशत फाइबर व 23.26 प्रतिशत लिपिड पाया जाता है।
होटल और रेस्टोरेंट से शुरू होगी कवायद
जिलाधिकारी रुद्रप्रयाग मयूर दीक्षित ने बताया कि मालू के पत्तों का इस्तेमाल सितंबर से प्रारंभ कर दिया जाएगा, जिससे यात्रा में आने वाले श्रद्धालुओं को मालू के पत्तों में भोजन कराया जा सके। इसके लिए केदारनाथ घाटी के विभिन्न पड़ावों में स्थित होटलों व रेस्टोरेंटों में इसकी कवायद शुरू कर दी गई है। इसके लिए कई स्वयं सहायता समूह आगे आकर सहयोग दे रहे हैं। इससे केदारनाथ घाटी में फैल रहे प्लास्टिक के कचरे को रोकने में खासी मदद मिलेगी। श्रद्धालुओं को देवभूमि के प्राकृतिक वातावरण में पैदा हुए औषधीय गुणों से भरपूर मालू के पत्तों में भोजन मिल सकेगा
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