'भारत छोड़ो' का आह्वान अमृत काल में आज और भी अधिक प्रासंगिक हैः उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने आज ऐतिहासिक ‘भारत छोड़ो आंदोलन‘ की 81वीं वर्षगांठ पर स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित की। उच्च सदन में उन्होंने संप्रभुता, अखंडता को बनाए रखने और भारत की सेवा के लिए स्वयं को फिर से समर्पित करने की हमारी प्रतिबद्धता की पुष्टि करने का आह्वान किया। उन्होंने इसे आत्मनिरीक्षण करने और अपने नैतिक योगदान पर विचार करने का अवसर बताया।
उपराष्ट्रपति ने संसद सदस्यों से राष्ट्र की सेवा में अधिक उत्साह के साथ फिर से समर्पित होने, लोगों की आकांक्षाओं को साकार करने और राष्ट्रों के समूह में भारत के लिए गौरवपूर्ण स्थान सुरक्षित करने का आग्रह किया।
महात्मा गांधी के ‘करो या मरो‘ के आह्वान पर विचार करते हुए, सभापति धनखड़ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि “इसने जनता में एक नई ऊर्जा का संचार किया, जिसकी परिणति हमारे देश को औपनिवेशिक शासन से आजादी हासिल करने में हुई।“
अपने वक्तव्य में राज्यसभा के सभापति ने स्वतंत्रता के बाद गरीबी उन्मूलन, साक्षरता को बढ़ावा देने, भेदभाव को खत्म करने और सामाजिक समावेश को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से किए गए प्रयासों को रेखांकित किया।
राज्यसभा के सभी सदस्यों ने आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों के सम्मान में सदन में मौन रखा।
सभापति के वक्तव्य:
“माननीय सदस्यों, आज 9 अगस्त, 2023 को उस ऐतिहासिक दिन की 81वीं वर्षगांठ है, इसी दिन, 1942 में महात्मा गांधी द्वारा ‘भारत छोड़ो आंदोलन‘ की शुरुआत की गई थी।
राष्ट्रपिता द्वारा दिए गए ‘करो या मरो‘ के आह्वान ने जनता में नई ऊर्जा का संचार किया, जिसकी परिणति हमारे देश को औपनिवेशिक शासन से आजादी हासिल करने में हुई।
यह संतोषजनक है कि आजादी के बाद गरीबी मिटाने, साक्षरता बढ़ाने, भेदभाव को खत्म करने और सामाजिक समावेश को प्रोत्साहन देने के प्रयास किए गए हैं।
अमृत काल में इन सभी मोर्चों पर देश को अपनी उपलब्धियों पर गर्व है और निस्संदेह हम 2047 में शताब्दी समारोह की ओर आगे बढ़ रहे हैं। इन सभी पहलुओं में प्रगति निरंतर वृद्धि पर आधारित होगी।
माननीय सदस्यगण, इस पवित्र अवसर पर हम उन सभी शहीदों को विनम्र और सम्मानजनक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
संसद सदस्य के रूप में यह हमारे लिए आत्मनिरीक्षण करने, अपने नैतिक योगदान पर विचार करने तथा राष्ट्र की सेवा में अधिक उत्साह के साथ फिर से समर्पित होने, लोगों की आकांक्षाओं को साकार करने और राष्ट्रों के समूह में भारत के लिए गौरवपूर्ण स्थान सुरक्षित करने का अवसर है।
मैं सदस्यों से अपने स्थान पर खड़े होने और शहीदों की पवित्र स्मृति में मौन रखने का अनुरोध करता हूं।
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