30 अगस्त को राखी (रक्षाबंधन) का पवित्र त्यौहार है। वैसे तो राखी भाई-बहन के असीम बंधन, अपनत्व, प्यार और असीम स्नेह का त्योहार है, लेकिन आज राखी का यह त्यौहार भाई बहन तक ही सीमित नहीं रह गया है। आज पर्यावरण की रक्षा के लिए पेड़-पौधों को राखी बांधी जाने लगी है। देश की रक्षा, हितों की रक्षा के लिए राखी बांधी जाने लगी है। विशेष रूप से हिंदूओं में प्रचलित यह त्योहार हमारे देश, संस्कृति, हमारी परंपराओं का प्रतीक है। यह त्योहार हमारे संपूर्ण देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बहुत ही उत्साह, उल्लास, खुशी के साथ मनाया जाता है।
पाठकों को यह विदित ही है कि राखी हर साल श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। वास्तव में रक्षाबंधन का यह पर्व परस्पर एक-दूसरे (भाई-बहन) की रक्षा, अपनत्व और सहयोग की भावना निहित है। वास्तव में रक्षाबंधन त्योहार की यदि हम संधि करें और इसके अर्थ को समझें तो इसमें रक्षा का अर्थ है सुरक्षा, और बंधन का अर्थ है बंधन। इसलिए यह त्योहार भाइयों और बहनों के बीच सुरक्षा, देखभाल और लंबे समय के बंधन का प्रतीक है। रक्षाबंधन के दिन बहनें भाइयों की दाहिनी कलाई पर बड़े ही प्यार से राखी बांधती हैं, उनका तिलक करती हैं, मुंह मीठा करवाती हैं और उनसे अपनी रक्षा का संकल्प लेती हैं। भाई भी बहनों को राखी पर उपहार स्वरूप पैसे, कपड़े, गहने आदि प्रदान करते हैं।
यदि हम राखी के त्योहार को इतिहास की नजर से देखें तो वामनावतार नामक पौराणिक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है। इस संबंध में विवरण मिलता है कि जब राजा बलि ने एक यज्ञ संपन्न कर स्वर्ग पर अधिकार का प्रयत्न किया, तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। विष्णु जी वामन ब्राह्मण बनकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। वामन भगवान ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। उसने अपनी भक्ति के बल पर विष्णु जी से हर समय अपने सामने रहने का वचन ले लिया। लक्ष्मी जी इससे चिंतित हो गई। नारद जी की सलाह पर लक्ष्मी जी बलि के पास गई और रक्षासूत्र बांधकर उसे अपना भाई बना लिया। बदले में वे विष्णु जी को अपने साथ ले आई। कहते हैं कि उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।
एक और कहानी के अनुसार हमारे इतिहास से हमें यह भी जानकारी मिलती है कि मेवाड़ की महारानी कर्मवती ने मुगल राजा हुमायूं को राखी भेजी थी। सच तो यह है कि उस दौरान गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख रानी ने हुमायूँ को राखी भेजी थी। हुमायूं ने एक मुसलमान शासक होते हुए भी राखी की लाज रखी। यह भी कहते हैं, सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरु को राखी बांधकर उसे अपना भाई बनाया था और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया था। पुरु ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवनदान दिया था।
एक अन्य कथा के अनुसार गिन्नौरगढ़ के राजा निजाम शाह गोंड के रिश्तेदार आलमशाह ने एक साजिश के तहत राजा को जहर देकर मार दिया था। तब रानी ने इसका बदला लेने और सियासत को बचाने के लिए मोहम्मद खान को राखी भेजकर मदद की गुजारिश की थी। उस समय मोहम्मद खान ने भाई का फर्ज निभाते हुए रानी की मदद की थी।
एक अन्य पौराणिक कथा के मुताबिक यमुना ने एक बार भगवान यम की कलाई पर धागा बांधा था। वह मन ही मन में यम को अपना भाई मानती थी। भगवान यम यमुना से इतने ज्यादा खुश हुए कि यमुना की रक्षा के साथ-साथ अमर होने का भी वरदान दे दिया। कहते हैं कि साथ ही उन्होंने यह वचन भी दिया था कि जो भाई अपनी बहन की मदद करेगा, उसे लंबी आयु का वरदान देंगे।
एक अन्य कथा भगवान गणेश जी की भी मिलती है, गणेश जी के पुत्र शुभ और लाभ एक बहन चाहते थे, तब भगवान गणेश जी ने एक यज्ञ करके मां संतोषी को प्रकट किया था। वैसे राखी का विवरण पुराणों में भी मिलता है। भविष्य पुराण के अनुसार, इस त्योहार की शुरुआत देवताओं-दानवों के युद्ध से हुई थी। कहते हैं कि इस युद्ध में देवता हारने लगे तब भगवान इंद्र घबरा कर देवगुरु बृहस्पति जी के पास पहुंचे। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। तब उन्होंने रेशम का एक धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बांध दिया था। संयोग से वह दिन भी श्रावण पूर्णिमा का ही दिन था। उस अभिमंत्रित धागे (राखी) की शक्ति से देवराज इंद्र ने असुरों को परास्त कर दिया। यह धागा भले ही पत्नी ने पति को बांधा था, लेकिन इस धागे की शक्ति सिद्ध हुई और फिर कालांतर में बहनें भाई को राखी बांधने लगीं।
महाभारत में भी रक्षाबंधन के पर्व का उल्लेख मिलता है। कहते हैं कि जब युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से जब यह पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी। यह भी विवरण मिलता है कि शिशुपाल का वध करते समय भगवान श्रीकृष्ण की तर्जनी (उंगली) में जब चोट आ गई थी, तो उस समय द्रौपदी ने लहू को रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर एक टुकड़ा उनकी तर्जनी उंगली पर बांध दी थी। कहते हैं कि इस दिन भी श्रावण मास की पूर्णिमा का ही दिन था। भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर राखी का कर्ज चुकाया था। यह भी जानकारी मिलती है कि रक्षाबंधन का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से भी जुड़ा हुआ है।
बहरहाल, इस बार तो हमारे इसरो ने चांद को भी एक प्रकार से राखी बांध दी। भारत का चंद्रयान-3 मिशन कामयाब हुआ और हम अंतरिक्ष के क्षेत्र में विश्व में सिरमौर बने, संपूर्ण विश्व हमारे देश की आज भूरी-भूरी प्रशंसा कर रहा है।
रक्षाबंधन भाइयों और बहनों के बीच बंधन, देखभाल और स्नेह का प्रतीक है। हमारी धरती मां (बहना) ने अपने चांद (भैय्या) का बिल्कुल नजदीक से दीदार किया और वह भी सावन या यूं कहें कि अगस्त के पवित्र महीने में जब राखी बिल्कुल नजदीक थी। वैसे सावन का पूरा महीना हिंदू धर्म के अनुसार बहुत ही शुभ व पवित्र माना जाता है। तेईस अगस्त के दिन ही हमारी धरती मां ने चंद्रयान-3 मिशन को कामयाब करके राखी का त्योहार मनाया और आज हम इससे गौरवान्वित हैं।
एक कविता के साथ:
‘लोग कह रहे हैं कि इस बार रक्षाबंधन
तीस अगस्त को है
लेकिन तारीखें मायने नहीं रखतीं
भाव महत्वपूर्ण हैं
हमारी धरती मां ने तो इस बार
तेईस अगस्त को ही मना लिया था रक्षाबंधन
जब सज-धज कर धरती मां पहुंची थी
चंद्रयान-3 मिशन में चंदा मामा के घर,
‘विक्रम’ और ‘प्रज्ञान’ को संग लेकर
रक्षाबंधन का यह पर्व भारत में ही नहीं
मनाया गया था संपूर्ण विश्व में सजाई धरती मां ने चंदा मामा की कलाई,
अपने स्नेह भरे हाथों से
मुंह पर मुस्कान का स्वर लिए
गूंज उठा था सौहार्द का अनुपम स्वर अंतरिक्ष में
हल्दी, अक्षत, रोली, चंदन का टीका
धरती मां ने लगाया था,
चंदा मामा के घर पर बिछी रेत की पगडंडियों ने
किया था स्वागत धरती मां का
की थी खूब मनुहार, फूट पड़ा था नेह घनेरा
युगों-युगों बाद अनूठा स्नेह मिलन
संभव हुआ था कायनात उतर पड़ी यकायक
भाई (चंदा)-धरती (बहन) को मिलाने के लिए
अंतरिक्ष में धरती मां ने महसूस किया नया सवेरा
इस विहान में फूट पड़ी स्वर्णिम रश्मियां
आशीर्वाद मिला धरती मां को
चंदा मामा से शुभ सौगात, अनूठा नाज
हिंदुस्तान को मिली नव सौगात,
धरती चंदा भाई-बहन युगों-युगों से
पीढ़ियां की पीढ़ियां बीत गई
अपनत्व तो अपनत्व होता है आखिर
उमड़ी प्रेम सरगम
आज मामा की कलाई सूनी नहीं है
वो देखो चांद के दक्षिणी भू पर चंदा मामा आज
बहना धरती संग मुस्कुरा रहा है
खुशियों में गा रहा है,
तिरंगा भी हंसी-खुशी से अनवरत फहरा रहा है
आज फिर से राखी का त्यौहार आया है
चंदा मामा ने धरती मां को रक्षाबंधन पर एक बार फिर बुलाया है
आओ-आओ फिर एक बार फिर चंदा मामा के घर चहलकदमी करते हैं
घेवर, खील-बताशे, आओ-आओ मुंह मीठा करते हैं
और रोशन रिश्तों को हम करते हैं…!’
- सुनील कुमार महला, युवा साहित्यकार
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