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हर्षोल्लास और सुरक्षित मनाई गई बड़ी दीपावली, गोवर्धन पूजा आज

दीपावली का पर्व पूरे क्षेत्र में हर्षोल्लास से मनाया गया। लोगों ने अपने घरों, प्रतिष्ठानों में धन की देवी मां लक्ष्मी की विधि विधान से पूजा-अर्चना की। दीए जलाए और घर को रंग-बिरंगी झालरों से सजाया। साथ ही बच्चों ने पटाखे जलाए।

रविवार को दीपावली का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना के साथ लोगों ने जमकर पटाखे जलाए। घरों में दीए जलाए गए और लोगों ने अपने घरों को फूल मालाओं और रंग बिरंगी झालरों से सजाया। एक दूसरे को मिठाई और उपहार देकर दीपावली की शुभकामनाएं दी। बच्चों ने फिरकी, महताबे और फुलझड़ी, अनार जलाकर दीपावली मनाई। लोगों ने घरों के साथ साथ मंदिरों पर भी दीए जलाकर पूजा-अर्चना की। 

दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस त्यौहार का भारतीय लोकजीवन में बहुत महत्व है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा सम्बन्ध दिखाई देता है। इस पर्व की अपनी मान्यता और लोककथा है। गोवर्धन पूजा में गोधन अर्थात गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों में गङ्गा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। ऐसे गौ सम्पूर्ण मानव जाति के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की।

जब कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचाने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उँगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएँ उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।

गोवर्धन पूजा की विधि

इस दिन प्रात: काल शरीर पर तेल मलकर स्नान करने का प्राचीन परम्परा है. इस दिन आप सवेरे समय पर उठकर पूजन सामग्री के साथ में आप पूजा स्थल पर बैठ जाइए और अपने कुल देव का, कुल देवी का ध्यान करीये पूजा के लिए गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत पूरी श्रद्धा भाव से बनाएँ। इसे लेटे हुये पुरुष की आकृति में बनाया जाता है। प्रतीक रूप से गोवर्धन रूप में आप बनाकर फूल, पत्ती, टहनीयो एवँ गाय की आकृतियों से सजाया जाता है।

गोवर्धन की आकृति बनाकर उनके मध्य में भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति रखी जाती है नाभि के स्थान पर एक कटोरी जितना गड्ढा बना लिया जाता है और वहां एक कटोरी व मिट्टी का दीपक रखा जाता है फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, मधु और बतासे इत्यादि डालकर पूजा की जाती है और फिर इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।

गोवर्धन पूजा के दौरान एक मंत्र का जाप करना चाहिए

कुछ स्थानों पर गोवर्धन पूजा के साथ ही गायों को स्नान कराने की उन्हें सिंदूर इत्यादि पुष्प मालाओं से सजाए जाने की परम्परा भी है इस दिन गाय का पूजन भी किया जाता है तो यदि आप गाय को स्नान करा कर उसे सजा सकते हैं या उसका श्रृंगार कर सकते हैं तो कोशिश करिए कि गाय का श्रृंगार करें और उसके सिंह पर घी लगाए गुड खिलाएं. गाय की पूजा के बाद में एक मंत्र का उच्चारण किया जाता है जिससे लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और आपके घर में कभी धन की कमी नहीं रहती है.

फल मिठाई इत्यादि आप पूजा के दौरान गोवर्धन में अर्पित करिए गन्ना चढ़ाई है और एक कटोरी दही नाभि स्थान में डाल कर झरनी में से छिड्कते हैं. गोवर्धन जो बनाया जाता है गोबर का उसमें दहि डालकर उसको झरनी से छानीये और फिर गोवर्धन के गीत गाते हुए गोवर्धन की सात बार परिक्रमा की जाती है परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा व दुसारा व्यक्ति अन्न यानि कि जौ लेकर चलते हैं और जल वाला व्यक्ति जल की धारा को धरती पर गिराते हुआ चलता है और दुसरा अन्न यानि कि जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी करते हैं.

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