नई दिल्ली, अक्टूबर 2025। इस बार की दिवाली और धनतेरस भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के चांदी बाजार के लिए यादगार बन गई। भारत में जब लोग चांदी के सिक्के और गहने खरीदने उमड़े, तो लंदन और न्यूयॉर्क के बाजारों में अफरा-तफरी मच गई। वजह — भारत में चांदी की इतनी ज़्यादा मांग कि देश का सबसे बड़ा रिफाइनर MMTC-PAMP तक का स्टॉक खत्म हो गया।
चांदी की ऐसी दीवानगी पहले कभी नहीं देखी गई
MMTC-PAMP के ट्रेडिंग हेड विपिन रैना ने बताया कि अपने 27 साल के करियर में उन्होंने चांदी के लिए ऐसा जोश पहले कभी नहीं देखा। कंपनी ने महीनों पहले त्योहारी सीजन की तैयारी की थी, लेकिन मांग उम्मीद से कई गुना ज्यादा निकल गई।
भारत बना वैश्विक ‘सिल्वर स्टॉर्म’ का कारण
रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस साल का “चांदी संकट” सीधे तौर पर भारत की त्योहारी खरीदारी से जुड़ा है।
दिवाली पर लक्ष्मी पूजा के लिए चांदी खरीदना परंपरा है, लेकिन इस बार यह परंपरा निवेश के नए ट्रेंड में बदल गई।
कई सोशल मीडिया क्रिएटर्स ने महीनों से प्रचार किया कि “अब चांदी की बारी है,” क्योंकि सोने की कीमतें पहले से ही रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं।
यही वजह रही कि आम खरीदारों के साथ निवेशकों ने भी चांदी पर दांव लगाया, जिससे मांग में विस्फोट हो गया।
चीन की छुट्टियों से टूटी सप्लाई, बढ़ी परेशानी
जब भारत में मांग अपने चरम पर थी, तभी चीन (सबसे बड़ा चांदी सप्लायर) एक हफ्ते की छुट्टी पर चला गया।
इससे सप्लाई चेन टूट गई और भारतीय व्यापारी मजबूरी में लंदन के बाजारों का रुख करने लगे।
लंदन में चांदी का संकट और दहशत
लंदन पहुंचने पर भारतीय ट्रेडरों को भी झटका लगा। वहां के चांदी के भंडार पहले से ही खाली हो रहे थे।
कारण दो थे —
सोलर एनर्जी इंडस्ट्री में चांदी की भारी मांग,
डॉलर की कमजोरी पर दांव लगाते हुए हेज फंड्स और निवेशकों का ETF में भारी निवेश।
2025 की शुरुआत से ही दुनिया भर के निवेशक 1 करोड़ औंस से अधिक चांदी खरीद चुके थे।
और जब भारतीय मांग इस पहले से ही तनावपूर्ण बाजार से टकराई — तो पूरा सिस्टम चरमरा गया।
भारत में चांदी खत्म, फंड्स ने लगाई रोक
स्थिति इतनी खराब हो गई कि जेपी मॉर्गन जैसे बड़े बैंक ने भारत को अक्टूबर में सप्लाई देने से मना कर दिया।
भारत में चांदी की कमी से कीमतें अंतरराष्ट्रीय स्तर से $5 प्रति औंस तक ऊपर चली गईं।
कोटक, UTI और SBI जैसे बड़े म्यूचुअल फंड्स को अपने सिल्वर ETF में नए निवेश पर रोक लगानी पड़ी।
धनतेरस से पहले ठप हुआ ग्लोबल ट्रेडिंग सिस्टम
9 अक्टूबर, यानी धनतेरस से ठीक एक हफ्ता पहले, लंदन का चांदी बाजार लगभग ठप हो गया।
ट्रेडिंग में तरलता (Liquidity) खत्म हो गई — मतलब बेचने वाला कोई नहीं, सिर्फ खरीदार ही खरीदार।
रातों-रात चांदी उधार लेने की लागत 200% तक बढ़ गई।
बड़े बैंक डर गए और कीमतें तय करना बंद कर दिया।
स्विस रिफाइनर Argor-Heraeus के CEO ने कहा,
“लंदन में अब कोई लिक्विडिटी नहीं बची थी — यह अभूतपूर्व स्थिति थी।”
इतिहास दोहरा रहा है खुद को?
ऐसा संकट चांदी के बाजार में पहले भी आ चुका है —
1980 में Hunt Brothers ने चांदी का बाजार हिला दिया था, जब कीमतें $6 से $50 प्रति औंस पहुंचीं।
1998 में वॉरेन बफे की कंपनी ने सालाना वैश्विक सप्लाई का 25% हिस्सा खरीद लिया था।
ताजा संकट को पिछले 45 सालों का सबसे बड़ा ‘Silver Shock’ कहा जा रहा है।
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