देहरादून , 8 अक्टूबर । उत्तराखंड की लोक संस्कृति और पारंपरिक मूल्यों को संजोने के लिए ग्राफिक एरा में गढ़वाली रामलीला का भव्य मंचन किया गया । यह सांस्कृतिक आयोजन भक्ति, लोकधुनों और गढ़वाली भाषा की मधुरता से सराबोर रहा, जहां हर दृश्य ने आस्था, संस्कृति और नाट्यकला का अनोखा संगम प्रस्तुत किया। गढ़वाली रामलीला की भावशाली प्रस्तुति ने दर्शकों के हृदय में गहरी सांस्कृतिक अनुभूति जगा दी।
गढ़वाली रामलीला का भव्य मंचन ग्राफिक एरा के सिल्वर जुबली कन्वेंशन सेंटर में किया गया। रामलीला का यह शानदार मंचन सूत्रधार मदन मोहन डुकलान और उनकी सहधर्मिणी के किरदार में सोनिया गैरोला ने अपनी कुटिया में आपसी संवाद के रूप में रामलीला के विभिन्न प्रसंगों की रोचक प्रस्तुति के साथ किया गया। जिससे दर्शक हर पल कहानी से जुड़ते रहे और कहीं भी दो दृश्यों के बीच दर्शकों को इंतजार नहीं करना पड़ा। नई तकनीकों के सधे हुए उपयोग ने रामलीला मंचन को और सजीव बना दिया।

रामलीला समारोह से पहले ग्राफिक एरा ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन्स के चेयरमैन डॉ. कमल घनशाला का उत्तराखंड की लोकसंस्कृति को प्रोत्साहन देने के लिए अभिनंदन किया गया। गढ़वाली रामलीला के निर्देशक, संयोजक व लोक कलाकार श्री कुलानंद घनशाला ने कहा कि इस रामलीला की शुरुआत डॉ कमल घनशाला की लोक परम्पराओं को संरक्षण और प्रोत्साहन के कारण संभव हुई है। डॉ घनशाला ने आधुनिकता और संस्कृति के अद्भुत संगम का उदाहरण प्रस्तुत किया। चेयरमैन डॉ कमल घनशाला ने कहा कि रामलीला की सदियों पुरानी कहानी ऐसी प्रस्तुतियों से हर बार बहुत रोचक ढंग से अपने कर्तव्यों के पालन की प्रेरणा देती है। आज के दौर में यह प्रेरणा और अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। रामलीला के आदर्श अपनाये जायें, तो देश और समाज की बहुत सी विसंगतियों और चुनौतियों का समाधान संभव है।

गढ़वाली रामलीला की शुरुआत राजा दशरथ के तीर से श्रवण की जान जाने की लीला के साथ हुई। भावुक कर देने वाले कई दृश्यों के साथ यह लीला रामजन्म से होते हुए ताड़का वध, सीता स्वयंवर, मंथरा द्वारा कैकई को राजा दशरथ से अपने वचन पूरे कराने के लिए तैयार करने, राम वनवास, सीता हरण और शबरी प्रसंग के साथ आगे बढ़ी। हर दृश्य ने दर्शकों के मन और भावनाओं पर गहरी छाप छोड़ी। इसके पश्चात हनुमान से भेंट, सीता की खोज, राम-रावण युद्ध और रावण वध ने लीला को चरम पर पहुँचा दिया। अंत में अयोध्या में श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ, जिसने सभागार को जयघोष और उमंग से भर दिया। हर प्रसंग में कलाकारों के सधे हुए अभिनय और नाट्य प्रस्तुति ने कथा को सिर्फ जीवन्त ही नहीं किया, बल्कि भक्ति, प्रेम, त्याग की भावनाओं को सीधे दर्शकों के दिलों तक पहुंचाया। दर्शक हर दृश्य में पूरी तरह डूब गए और रामलीला का हर क्षण उनके लिए एक अविस्मरणीय और दिल छू लेने वाला अनुभव बन गया। श्रवण को राजा दशरथ का बाण लगने, वियोग में उनके माता पिता के देह छोड़ने और सीता की जनकपुरी से विदाई समेत कई दृश्य इतने सजीव और भावुक बना देने वाले थे कि काफी दर्शकों की आंखें नम हो गईं।
रामलीला में भगवान राम के रूप में आयुष रावत, सीता के रूप में अनुप्रिया सुन्दरियाल, लक्ष्मण के रूप में आलोक सुन्दरियाल, भरत की भूमिका में गौरव रतूड़ी, शत्रुघन के रूप में हर्ष पांडे , हनुमान के किरदार में मुकेश हटवाल, शूर्पणखा के रूप में तानिया चौहान, कुंभकरण के रूप में नंदकिशोर त्रिपाठी, मेघनाथ बने कार्तिक मैखुरी, विभीषण के किरदार में विजय सिंह रावत और रावण की सशक्त भूमिका में दिनेश सिंह भंडारी ने अपने उत्कृष्ट अभिनय की गहरी छाप छोड़ी। रामलीला का आयोजन ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी और हिमालय लोक साहित्य एवं संस्कृति विकास ट्रस्ट ने किया। कार्यक्रम में ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. नरपिंदर सिंह, प्रो-वी.सी. डॉ. संतोष एस. सर्राफ, कुलसचिव डॉ. नरेश कुमार शर्मा , डीन ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स डॉ. डी. आर. गंगोडकर सहित अन्य पदाधिकारी, विभागाध्यक्ष, शिक्षक-शिक्षिकाएं और बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं ने उपस्थित रहकर गढ़वाली रामलीला के इस भव्य मंचन का आनंद लिया और कलाकारों के प्रदर्शन की सराहना की। समारोह में रामलीला के निर्देशक कुलानंद घनशाला की पुस्तक का डॉ कमल घनशाला ने विमोचन भी किया। संचालन मैनेजमेंट के शिक्षक डॉ गिरीश लखेड़ा ने किया।
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