हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग द्वारा दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन
श्रीनगर (गढ़वाल): हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी की शुरुवात की गई। 1857 से 1947 के हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय चेतना विषय पर इस वेब संगोष्ठी की शुरुआत के प्रथम चरण में कुलपति एवं संरक्षक प्रो० अन्नपूर्णा नौटियाल, हिंदी विभाग अध्यक्ष – प्रो० मृदुला जुगरान, सह संरक्षक प्रो० आर सी भट्ट शामिल रहे।
अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी की संयोजक प्रो० गुड्डी बिष्ट ने संचालन करते हुए अतिथियों का स्वागत एवं अभिनंदन किया। उन्होंने विश्वविद्यालय के बारे में बताया, साथ ही उन्होंने क्षेत्र की प्रतिकूल भौगोलिक स्थितियों के बारे में बताया और विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम और यहां पर हो रहे शोध और उनकी महत्ता पर बातचीत रखी।
बीज वक्तव्य – प्रो० नवीन चंद लोहानी ने स्वतंत्रता आंदोलनों का महत्व, स्वतंत्रता आंदोलनों में कवियों और लेखकों की भूमिका, सामाजिक संस्थाओं का योगदान, बोलियों के साहित्य की महत्ता के विषय में बताया।
प्रो० गोपेश्वर सिंह ने बतौर मुख्य वक्ता के रूप में राजनैतिक स्वतंत्रता के रूप को वर्णित किया, आजादी के व्यापक अर्थ को बताया। स्वतंत्रता की समग्र चेतना को भी परिभाषित किया।
जर्मनी हैम्बर्ग से अतिथि वक्ता डॉ० रामप्रसाद भट्ट ने राष्ट्रीय चेतना के विविध विषयों पर दृष्टि, साहित्य में विविध राष्ट्रों और भारतीय पृष्ठभूमि में स्थिति, भारतीय संस्कृति और भारतीय राष्ट्रीय चेतना, भारत में वर्तमान में धर्म और राजनीति की स्थिति, राष्ट्रीय चेतना की जागृति में साहित्यकार भारतेंदु और प्रेमचंद का योगदान आदि विषय पर प्रकाश डाला।
सत्र के अध्यक्षीय उद्बबोधन में प्रो० अन्नपूर्णा नौटियाल ने सभी अतिथि विद्वानों का स्वागत अभिनंदन किया। साथ ही उन्होंने वर्तमान दौर की राष्ट्रीय चेतना और सामाजिक सौहार्द पर वक्तव्य दिया। वन अर्थ वन फ्यूचर वन फैमली की भारतीय दृष्टिकोण पर भी प्रकाश डाला। साथ ही उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय चेतना और भारतीय एकता में अनेकता के गहरे चिंतन के संयोग को बताया। भारतीय संस्कृति में योग और भारतीय चेतना पर भी बात रखी।
डॉ० अमित कुमार शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया, ज्ञापन हिंदी भाषा के भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का योगदान, कार्यक्रम में जुड़े सभी सदस्यों का धन्यवाद ज्ञापित किया।
द्वितीय चरण में प्रो० रचना विमल, सत्यवती कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में साहित्य का प्रचार-प्रसार पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से हुआ और भारत दुर्दशा तत्कालीन समाज का दस्तावेज है।
सुरेश चंद्र शुक्ल ने नार्वे से प्रतिभाग किया। उन्होंने कहा कि अनेकता में एकता भारत की विशेषता है, और राष्ट्रीय आंदोलन में अनेक प्रांत व उनके लोगों का योगदान रहा।
प्रो० मृदुला जुगरान ने कहा कि 1857 का स्वतंत्रता संग्राम पराधीन भारत में मुक्ति की छटपटाहट थी। उन्होंने कहा राष्ट्रीय चेतना ने समय व काल के साथ देश को एवं देश के साहित्य को प्रभावित किया और कवियों और लेखकों ने बड़ी संख्या में राष्ट्रीय चेतना को जगाया और स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया।
वेब संगोष्ठी में देश के अनेक राज्यों के शोधार्थियों ने भाग लिया।
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