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भारतीय इतिहास में साहित्यकारों की भूमिका पर चर्चा के साथ संगोष्ठी का समापन

भारतीय इतिहास में साहित्यकारों की भूमिका पर चर्चा के साथ संगोष्ठी का समापन

हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के हिंदी एवं भारतीय भाषा विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी के दूसरे दिन प्रथम सत्र की अध्यक्षता बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की प्रो० श्रद्धा सिंह द्वारा की गई। 

दूसरे दिन संगोष्ठी की समन्वयक प्रो० गुड्डी बिष्ट पंवार ने अभिवादन के साथ सत्रों की  शुरुआत की। उन्होंने कवि माखनलाल चतुर्वेदी की देश प्रेम और वीरता से संबंधित पंक्तियों से कार्यक्रम की भूमिका को बांधा। जिसके पश्चात कार्यक्रम संयोजक प्रो० मृदुला जुगरान द्वारा कार्यक्रम के सभी प्रो० अतिथि वक्ताओं – सुनील कुमार द्विवेदी, प्रो० कोयल विश्वास, प्रो० श्रद्धा सिंह समेत सभी विभागीय प्राध्यापकों  एवं प्रतिभागियों का स्वागत और आभार प्रकट किया गया। 

सत्र की अध्यक्षता एवं मुख्य वक्ता प्रो० श्रद्धा सिंह ने अपने व्याख्यान में 1857-1947 के दौरान जो साहित्य प्रतिबंधित था, उसके व्यापक पक्षों पर व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि भारत आजादी के 75 वर्षों के उपलक्ष्य में अमृत महोत्सव मना रहा है, ये आज़ादी के लिए अहम भूमिका निभाने वाले साहित्यकारों को याद करने का वक्त है। उन्होंने इतिहास में भारतीय राष्ट्रीय चेतना के दमन के प्रयासों पर चर्चा की तथा हिंदी के लेखकों द्वारा स्वतंत्रता की चेतना से युक्त लिखे साहित्य पर उपनिवेशवादी विचारधाराओं द्वारा पूर्ण विरोध और कठोर निर्णयों का संक्षिप्त ब्यौरा दिया। साथ ही व्याख्यान में उन्होंने पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से राष्ट्रीय आंदोलनों के दौरान उपयोगिता पर प्रकाश डाला और विभिन्न भारतीय भाषाओं में लिखे क्रांतिकारी साहित्य पर उपनिवेशवादी शक्तियों द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने, साहित्य से परिचय कराया, और भारतीय परिप्रेक्ष्य में विभिन्न जातीय विमर्शों द्वारा ऐतिहासिक राष्ट्रीय चेतना के योगदान व्याख्यान दिया।

आमंत्रित वक्ता के रूप में  प्रो० कोयल विश्वास ने विष्णु  प्रभाकर और कृष्णा सौबती की कहानियों का विश्लेषण किया और भारतीय राष्ट्रीय इतिहास में विस्थापन की त्रासदी पर प्रकाश डाला। वहीं प्रो० सुनील कुमार द्विवेदी ने इस सत्र में उपन्यास साहित्य पर विस्तृत व्याख्यान दिया और आज की तेजी से बदलती दुनिया में राष्ट्रीय चेतना के अतीत का विस्मृत होने की परिस्थितियों पर प्रकाश डाला। 

इस सत्र में स्वीडन के छात्र डेविड द्वारा सभी विद्वानों एवं प्रतिभागियों के साथ हिंदी के प्रति अपने अनुभवों और वर्तमान में हिंदी के विविध आयाम पर चर्चा की और उन्होंने विश्वविद्यालय को धन्यवाद दिया और इस अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में आमंत्रित किया। 

सत्र का समापन हिंदी विभाग के डॉ० कपिल देव पंवार ने धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। वहीं दूसरे दिन के दूसरे सत्र में संगोष्ठी में देश के विभिन्न राज्यों समेत विदेशी  पंजीकृत प्रतिभागियों द्वारा अपने शोध पत्रों का प्रस्तुतीकरण किया गया। संगोष्ठी के समापन सत्र में समन्वयक प्रो० गुड्डी बिष्ट द्वारा कुलपति प्रो० अन्नपूर्णा नौटियाल का आभार व्यक्त किया गया, जिनकी प्रेरणा और मार्गदर्शन का प्रतिफल यह संगोष्ठी रही।

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