सांस रुकने और धड़कन बंद होने के बाद भी जिंदगी मौत से बचा सकते हैं घायल को
देहरादून, 10 जून। सांसे रुक जाएं और दिल धड़कना बंद हो जाए… तब भी कुछ मिनट के भीतर सीपीआर देकर जिंदगी बचाई जा सकती है। कल शुक्रवार 9 जून को चकराता रोड पर एक दुर्घटना के बाद ऐसा ही वाकया पेश आया। भीड़ से घिरे युवक को सड़क पर पड़ा देखकर उधर से गुजरते एक डॉक्टर ने सीपीआर देकर मौत की ओर कदम बढ़ा चुके युवक को नई जिंदगी की सौगात दे दी।
चकराता रोड पर सुद्धोवाला के पास सुबह करीब साढ़े दस बजे यह घटना हुई। बाइक दुर्घटना के बाद 28-30 साल का युवक जमीन पर पड़ा था और चारों तरफ तमाशबीन जैसे अंदाज में तमाम लोग खड़े थे। उधर से गुजरते डॉ० एस पी गौतम भीड़ देखकर वहां पहुंचे और वहां पड़े युवक की जांच की। डॉ० गौतम ने पाया कि युवक का शरीर कोई हरकत नहीं कर रहा था। उसकी सांसे बंद हो चुकी हैं और दिल का धड़कना रुक गया है। पेशे से कार्डियक एनेस्थिया के विशेषज्ञ डॉ० गौतम ने वहीं बैठकर उस युवक की सीपीआर शुरू कर दी।
डॉ० गौतम ने बताया कि भीड़ में से किसी के मदद न करने के कारण उन्हें अकेले सीपीआर (सीने को एक खास विधि से बार बार दबाने) में दिक्कत आ रही थी। तभी एक कार में सवार व्यक्ति मदद के लिए आगे आया और सीपीआर देते हुए उन्होंने युवक को कार में चढ़ा दिया। इसके बाद युवक को ग्राफिक एरा अस्पताल पहुंचाकर इलाज शुरु कर दिया गया।
युवक को कई गंभीर चोटें आई हैं। अभी वह वेंटिलेटर पर है, लेकिन रिस्पॉन्स करने लगा है। ग्राफिक एरा अस्पताल के कार्डियक एनेस्थीसिया विशेषज्ञ डॉ० एस पी गौतम के प्रयासों ने इस युवक को मौत के मुंह से बचा लिया गया।
डॉ० गौतम ने आज कहा कि सांस और धड़कन बंद होने के तीन से पांच मिनट के बाद दिमाग की कोशिकाएं मरने लगती हैं। इससे पहले सीपीआर मिल जाए, तो मस्तिष्क को क्षति पहुंचने से बचाया जा सकता है। यही इस मामले में हुआ।
घायल युवक का नाम रजत है। उसके पिता सुनील कुमार आईटीबीपी में सेवारत हैं। आज उन्होंने कहा कि समय पर सीपीआर मिलने के कारण उनका बेटा बच गया। शायद इसी लिए डॉक्टर को भगवान कहते हैं।