जोशीमठ में भू धंसाव के बाद अब बद्रीनाथ मंदिर पर खतरा मंड़राने लगा है। बद्रीनाथ मंदिर के मुख्य गेट में दरारें आई हैं। यह दरारें करीब एक सप्ताह पहले देखीं गई थीं।
जोशीमठ से महज 40 किमी की दूरी पर भू धंसाव की सूचना से हड़कंप मच गया है। आनन फानन में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने मौके का सर्वे कर मरम्मत का काम शुरू कर दिया है। बता दें कि इसी साल जनवरी महीने में उत्तराखंड के जोशीमठ में भू धंसाव हुआ था। इसकी वजह से सैकड़ों परिवार बेघर हो गए थे। एएसआई के अधिकारियों ने उस समय भी मौके पर टीम भेज कर अध्ययन कराया था। तैयार रिपोर्ट में माना गया था कि यह भू धंसाव बारिश और एनवायरमेंटल फैक्टर की वजह से आए थे। बद्रीनाथ मंदिर के सिंहद्वार में आए दरार के लिए भी एएसआई ने इन्हीं कारणों को जिम्मेदार बताया है।
इसी के साथ एएसआई ने मौका मुआयना करने के बाद रिपेयरिंग का काम शुरू कर दिया है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक देहरादून सर्किल के सुपरिटेंडिंग आर्कियोलॉजिस्ट मनोज सक्सेना ने इसे मामूली दरारें बताई हैं। कहा कि एएसआई की टीम ने दीवार में लगे लोहे के क्लैंप को बदलने ओर का काम शुरू कर दिया है। इससे पत्थरों के जोड़ में मजबूती आएगी। इसी प्रकार उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने भी इसे माइनर क्रेक बताया है। कहा कि ऐसा जमीन सरकने की वजह से हुआ है।
उन्होंने कहा कि मरम्मत कार्य चल रहा है और इसपर सरकार की पूरी नजर है। उन्होंने बताया कि मंदिर के सिंह द्वार का निर्माण मंदिर के स्ट्रक्चर का हिस्सा नहीं है, बल्कि इसका निर्माण अलग से किया गया है। इसलिए सिंह द्वार में आए क्रेक से मंदिर के स्ट्रक्चर पर खतरा नहीं कहा जा सकता। उन्होंने बताया कि सिंह द्वार का स्ट्रक्चर भी 17वीं शदी का है और मंदिर कांप्लेक्स का हिस्सा है। इसमें स्ट्रक्चर में भी कुछ देवी देवताओं की मूर्तियां और प्रतीक चिन्ह लगे हैं।
उधर, एचएनबी गढवाल यूनिवर्सिटी के भूगर्भ विभाग के हेड एमपीएस बिष्ट ने बताया कि जोशीमठ वाली स्थिति बद्रीनाथ में नहीं है। इसकी वजह यह है कि दोनों अलग अलग जियोलॉजिकल फार्मेशन पर स्थित हैं। उन्होंने कहा कि बद्रीनाथ मंदिर के सिंह द्वार में आई दरारों की कुछ स्थानीय वजह हो सकती हैं। इन्हें जोशीमठ से जोड़ना ठीक नहीं है। इसी प्रकार एएसआई के अधिकारियों ने मौके का सर्वे करने के बाद संभावना जताई जताई है कि सिंह द्वारा में लोहे के क्लैंप लगे हैं। बहुत संभव है कि दीवार में पानी जाने से जंक लगने और इससे इनकी पकड़ कमजोर होने की वजह से ऐसी स्थिति बनी हो। बताया कि करीब 30 साल पहले इस गेट का रिनोवेशन किया गया था। उसके बाद से यह स्थिति पहली बार देखी गई है। बताया कि मरम्मत कार्य के तहत गेट में लगे उन सभी पत्थरों को बदल दिया गया है, जो अपनी जगह से सरक गए हैं।