जनपद चमोली का यह वंशीनारायण मंदिर ऊर्मग घाटी के देवग्राम से 12 किमी की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर समुद्र तल से करीब 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर श्रावण मास के पूर्णिमा के दिन मात्र रक्षाबंधन के दिन पूजा होती है।
मंदिर की यह विशेषता है कि यह 6 फीट से भी लम्बी विशालकाय शिलाओं से बना है। मान्यता है कि पांडव यही से होकर बद्रीनाथ के लिए आगे बढ़े थे। इस मंदिर के पास नारायण की फूलों की बगिया भी है। मंदिर में आने वाले लोग इन फूल को तोड़ते नहीं हैं। इसके अलावा स्थानीय भेड़-बकरियां और जानवर भी मदिर के पास के स्थान पर नहीं जाते हैं।
श्रावण मास की पूर्णिमा को रक्षा बंधन के दिन स्थानीय लोग मंदिर में पूजा अर्चना के लिए पहुंचते है। इसकी खासियत यह है कि बड़ी संख्या में पहुंचे लोगों में कुंवारी कन्याएं और विवाहित महिलाएं पहले वंशीनारायण भगवान को राखी बांधती है और फिर अपने-अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है। गौरतलब है कि हिंदू धर्म के अनुसार रक्षाबंधन में सिर्फ भाई और बहन को ही नहीं बल्कि भगवान, मंदिर और वाहनों को भी राखी बांधी जाती है।
चमोली जनपद में बद्रीनाथ क्षेत्र की उर्गम घाटी में मौजूद श्री वंशीनारायण मंदिर साल भर बंद रहता है और सिर्फ रक्षाबंधन के दिन मंदिर के कपाट भक्तों के लिए खोले जाते हैं। पूरे दिन वंशीनारायण भगवान के दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती हैं।
श्री वंशीनारायण मंदिर देवभूमि उत्तराखंड का अकेला ऐसा मंदिर है जो पूरे साल में मात्र रक्षाबंधन पर एक दिन खुलता ही है। सूर्यास्त होते ही मंदिर के कपाट फिर बंद कर दिए जाते हैं।
मंदिर का स्थान और दृश्य
चमोली जिले के मुख्यालय गोपेश्वर से उर्गम घाटी तक वाहन से पहुंच सकते हैं और फिर आगे 12 किलोमीटर का सफर पैदल चलना पड़ता है। रास्ते में पांच किलोमीटर क्षेत्र में मखमली घास के मैदानों पड़ते हैं, जिसकों पार करने के बाद सामने पहाड़ी शैली कत्यूरी में बना वंशीनारायण मंदिर नजर आता है। दस फुट ऊंचे इस मंदिर में भगवान की चतुर्भुज मूर्ति विराजमान है। मंदिर में परंपरा के अनुसार पुजारी राजपूत भक्त हैं।
मंदिर की मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर दानवीर राजा बलि का अभिमान चूर कर उसे पाताल लोक भेजा। तब राजा बलि ने भगवान से अपनी सुरक्षा का आग्रह किया। इस पर श्रीहरि विष्णु स्वयं पाताल लोक में बलि के द्वारपाल बन गए। ऐसा होने पर जब कई दिनों तक भगवान विष्णु के दर्शन नहीं हुए तो माता लक्ष्मी बहुत चिंतित हुई। जिस कारण वह नारद मुनि के पास गई, और फिर नारद मुनि ने माता को बताया कि भगवान विष्णु पाताल लोक में हैं। जहाँ विष्णु भगवान बलि के द्वारपाल बने हुए हैं। समस्या के उपाय हेतु नारद मुनि ने लक्ष्मी माता को बताया कि भगवान विष्णु को वापस पाने के लिए आपको श्रावण मास की पूर्णिमा को पाताल लोक जाना होगा। मुनि ने कहा वहां पहुंचकर आपको राजा बलि की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधना होगा और फिर उनसे भेंट में भगवान नारायण को वापस मांगना होगा। अतः माता लक्ष्मी ने ऐसा ही किया। इस क्रम में कलगोठ गांव के पुजारी ने नारायण भगवान की पूजा की और तब से यह परंपरा चली आ रही है।
Related posts:
- बद्रीनाथ धाम के आज प्रातः खुले कपाट, प्रधानमंत्री के नाम की पहली पूजा
- जिस मंदिर में शिव-पार्वती ने किया था विवाह, TV एक्ट्रेस निकिता शर्मा ने उसी जगह लिए सात फेरे
- राम मंदिर की नींव के निर्माण का काम पूरा
- शनिवार को शीतकाल के लिए बंद हुए केदारनाथ मंदिर के कपाट, देखिये वीडियो
- केदारनाथ के रक्षक भगवान भैरवनाथ के कपाट मंगलवार को होंगे बंद
- भगवान बुद्ध भारत के संविधान के प्रेरणास्रोत हैं: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी