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हरित क्रांति के जनक एम एस स्वामीनाथन का निधन, पढ़िए उनकी उलब्धियाँ

हरित क्रांति के जनक एम एस स्वामीनाथन का निधन, पढ़िए उनकी उलब्धियाँ

98 साल की उम्र में दुनिया को कहा अलविदा

धान की ज्यादा उपजाऊ किस्मों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कम आय वाले किसानों के लिए उनकी खोज एक तरह की क्रांति थी। 

भारत की हरित क्रांति के जनक वैज्ञानिक और पूर्व राज्यसभा सांसद एम एस स्वामीनाथन (M S Swaminathan) ने आज, 28 सितंबर को हमें अलविदा कह दिया। वे 98 वर्ष के थे. अपने चेन्नई स्थित घर पर ही उन्होंने अंतिम क्षण गुज़ारे।

‘हरित क्रांति’ के माध्यम से भारतीय कृषि में बदलाव लाने वाले प्रख्यात अनुवांशिकीविद् और कृषि वैज्ञानिक मनकोम्बु संबाशिवन स्वामीनाथन (Mankombu Sambasivan Swaminathan) का जन्म 7 अगस्त 1925 को कुंभकोणम, तमिलनाडु में हुआ था। अपने पैतृक शहर के एक स्थानीय स्कूल से मैट्रिक करने के बाद, उन्होंने एक मेडिकल स्कूल में प्रवेश लिया। लेकिन, 1943 के बंगाल के अकाल, जिसमें लगभग 30 लाख लोग भूख से मर गए, ने उनका मन बदल दिया। जिसके बाद उन्होंने कृषि अनुसंधान की ओर मन बना लिया।

प्रोफेसर स्वामीनाथन एक प्रसिद्ध कृषिविज्ञानी और पौधों के अनुवांशिक विज्ञानी (plant geneticist) थे। उन्होंने धान की ज्यादा उपजाऊ किस्मों को विकसित करने में अहम भूमिका निभाई थी। कम आय वाले किसानों के लिए उनकी खोज एक तरह की क्रांति थी। 

1960 के दशक में भारत को अकाल से बचाने के लिए स्वामीनाथन और उनके अमेरिकी वैज्ञानिक साथी नॉर्मन बोरलॉग को ही श्रेय दिया जाता है। 

TIME मैगजीन की प्रभावशाली एशियन्स की लिस्ट नाम शामिल 

दुनिया की प्रख्यात TIME मैगजीन ने केवल तीन भारतीयों को 20वीं सदी के सबसे प्रभावशाली एशियन्स की लिस्ट में रखा था: रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी और एम एस स्वामीनाथन। 

स्वामीनाथन 1987 में प्रथम विश्व खाद्य पुरस्कार से सम्मानित 

वैज्ञानिक स्वामीनाथन को 1987 में प्रथम विश्व खाद्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसे कृषि क्षेत्र में सबसे ऊंचे सम्मान के रूप में देखा जाता है। उन्हें एच के फिरोदिया पुरस्कार, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय पुरस्कार और इंदिरा गांधी पुरस्कार समेत रेमन मैग्सेसे पुरस्कार और अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व विज्ञान पुरस्कार जैसे अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले हैं। 

भारत सरकार ने भी उन्हें पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया है। अपने जीवन के उत्तरार्ध में उन्होंने चेन्नई में स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की थी।

सम्मान और पुरस्कार

लंदन की रॉयल सोसायटी सहित विश्व की 14 प्रमुख विज्ञान परिषदों ने एम. एस. स्वामीनाथन को अपना मानद सदस्य चुना है। अनेक विश्वविद्यालयों ने डॉक्टरेट की उपाधियों से उन्हें सम्मानित किया है। स्वामीनाथन द्वारा प्राप्त किए गए सम्मान व पुरस्कार इस प्रकार हैं।

1971 में सामुदायिक नेतृत्व के लिए ‘मैग्सेसे पुरस्कार’

1986 में ‘अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड साइंस पुरस्कार’

1987 में पहला ‘विश्व खाद्य पुरस्कार’

1991 में अमेरिका में ‘टाइलर पुरस्कार’

1994 में पर्यावरण तकनीक के लिए जापान का ‘होंडा पुरस्कार’

1997 में फ़्राँस का ‘ऑर्डर दु मेरिट एग्रीकोल’ (कृषि में योग्यताक्रम)

1998 में मिसूरी बॉटेनिकल गार्डन (अमरीका) का ‘हेनरी शॉ पदक’

1999 में ‘वॉल्वो इंटरनेशनल एंवायरमेंट पुरस्कार’

1999 में ही ‘यूनेस्को गांधी स्वर्ग पदक’ से सम्मानित

‘भारत सरकार ने एम. एस. स्वामीनाथन को ‘पद्मश्री’ (1967), ‘पद्मभूषण’ (1972) और ‘पद्मविभूषण’ (1989) से सम्मानित किया था।

 

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