अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चिकित्सा वैज्ञानिक और भारतीय फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री के भीष्म पितामह के रूप में प्रख्यात रहे प्रोफेसर नित्यानंद का आज सुबह लखनऊ में निधन हो गया। डॉक्टर नित्यानंद, भारतीय दवा उद्योग की एकमात्र जननी संस्थान, विश्व विख्यात केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान – ( सीडीआरआई के नाम से लोकप्रिय) के संस्थापक निदेशकों में से रहे हैं।
वैज्ञानिक समुदाय में अब तक की ईजाद इकलौती नॉन हार्मोनल, नों स्टेरॉयडल कांट्रेसेप्टिव पिल (गैर हार्मोनल, गैर स्टेरॉइडल गर्भनिरोधक गोली), सहेली, जिसे एक समय में नोबेल पुरस्कार से पुरस्कृत करने तक के लिए विचार किया जा रहा था, के जनक भी प्रोफेसर नित्यानंद ही थे। वर्तमान में यह औषधि छाया के नाम से राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम (National family planning program) में भी शमिल रहे है।
डॉ. नित्यानन्द एक जनवरी 1925 को हुआ। उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज लाहोर से बी. एससी (1943), सेंट स्टीफन कॉलेज, दिल्ली से रसायन शास्त्र में एम.एससी (1945), यू. डी. सी. टी., बम्बई से रसायन शास्त्र में पीएच. डी. (1948) तथा कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी, यू, के. से न्यूक्लीक एसिड के क्षेत्र में दूसरी पीएच. डी. (1950) की डिग्री प्राप्त की। आपने 1951 में सी. डी. आर. आई. के उदघाट्न के तुरन्त बाद इसमें कार्य भार ग्रहण कर लिया और 1984 में इसके निदेशक के पद से सेवानिवृत हुए। वह 1958 से 1959 तक बोस्टन में हार्वर्ड मेंडिकल स्कूल की रॉकफैलर फाउन्डेशन फैलोशिप पर संयुक्त राज्य अमेरिका में रहे।
उन्होंने सी. डी. आर. आई. में मैडिसनल कैमिस्ट्री रिसर्च में एक सक्रिय स्कूल का निर्माण किया जिसने नई औषधियों की डिजायन, खोज और विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। डॉ. नित्यानन्द के अनुसंधान से केन्टक्रोयन (सहेली), एक ओरल कन्ट्रेसेप्टिव; सेन्टब्यूक्रीडाइन, एक लोकल एनस्थेटिक तथा गुगलिप एक लिपिड लॉवरिंग औषध जैसी अनेक नई औषधियों की खोज हुई।
इतना ही नहीं लगभग 400 शोध पत्र प्रकाशित किए हैं, ‘आर्ट इन ऑर्गेनिक सिन्थैसिस’ पर संयुक्त रूप से दो पुस्तकें लिखी हैं, मानक पाठ्य पुस्तकों के लिए लगभग 30 अध्याय लिखे हैं और परिजीवियों (पैरासाइट्स) से होने वाली बीमारियों पर दो पुस्तकों का सम्पादन किया है। आपको बता दें कि डॉ. नित्यानन्द को लगभग 150 राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय पेटेन्ट प्रदान किए गए हैं। इसी योगदान के चलते भारत सरकार की तरफ से उन्हे साल 2012 में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया।