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उत्तराखंड में वनाग्नि से हिमालय के दुर्लभ जीवों को खतरा: विशेषज्ञ

उत्तराखंड में वनाग्नि से हिमालय के दुर्लभ जीवों को खतरा: विशेषज्ञ

उत्तराखंड में हर साल विनाशकारी जंगल की आग न केवल पेड़-पौधों, झाड़ियों, जड़ी-बूटियों और मिट्टी की मोटी परत जैसी मूल्यवान वन संपदा को नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि यह जंगली जानवरों, सरीसृपों, स्तनधारियों, पक्षियों और तितलियों जैसे दुर्लभ हिमालयी जीवों के लिए भी किसी खतरे से कम नहीं है, ऐसा विशेषज्ञों ने कहा है।

उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक (शोध) संजीव चतुर्वेदी ने कहा, ‘‘हमारे यहां पक्षियों की कई दुर्लभ प्रजातियां हैं, जिनका प्रजनन काल वनाग्नि काल के दौरान अप्रैल से जून के बीच ही होता है। बार-बार लगने वाली और अनियंत्रित वनाग्नि के कारण ये प्रजातियां उत्तराखंड के जंगलों में संकट में आ गई हैं।” उन्होंने बताया कि चीर फीजेंट, कलीज फीजेंट, रूफस बेलीड कठफोड़वा, कॉमन रोज, चॉकलेट पेंजी और कॉमन क्रो का प्रजनन काल मार्च से जून के बीच होता है और यही वनाग्नि की भी अवधि है।

चतुर्वेदी ने कहा कि पश्चिमी हिमालय में 1800 से 3200 मीटर की ऊंचाई पर रहने वाली चीर फीजेंट वनाग्नि के प्रति बहुत संवेदनशील है क्योंकि यह अपने घोंसले जमीन पर घनी झाड़ियों में बनाती है और इसका प्रजनन काल वनाग्नि के समय ही होता है। उन्होंने बताया कि यह पक्षी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी संकटग्रस्त पक्षियों की सूची में शामिल है। एक शोधकर्ता और मुनस्यारी में हिमालयी चिड़ियों के प्रेमी सुरेंद्र पंवार ने कहा, ‘‘न केवल चीर फीजेंट बल्कि पिपिट पक्षी, रोज फिंच और हिमालयन मोनाल वनाग्नि सहित कई कारणों से संकटग्रस्त पक्षियों की श्रेणी में आ गए हैं।”

हिमालयी तितलियों के संरक्षण के लिए काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन विंग्स फाउंडेशन के संस्थापक निदेशक जगदीश भट्ट ने कहा कि हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली तितलियों की 350 प्रजातियों में से करीब 120 संकटग्रस्त होने की कगार पर पहुंच गई है क्योंकि ये जिन पेड़-पौधों पर प्रजनन करती हैं, वे वनाग्नि में नष्ट हो जाते हैं। सूत्रों ने बताया कि देहरादून स्थित वन अनुसंधान संस्थान भी पूरे दक्षिण पूर्व क्षेत्र में पाए जाने वाले और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची चार में सूचीबद्ध पीले सिर वाले कछुए पर वनाग्नि के प्रभाव को लेकर अनुसंधान कर रहा है।

चतुर्वेदी ने कहा, ‘‘इस परियोजना के तहत हम राजाजी राष्ट्रीय पार्क की चीला रेंज में दो साल के लिए पीले सिर वाले कछुए पर रेडियो ट्रांसमीटर लगाएंगे।” उत्तराखंड में पिछले साल नवंबर से अब तक 1437 हेक्टेयर जंगल आग की भेंट चढ़ चुका है। हालांकि, राज्य में हाल में हुई बारिश से वनाग्नि से निपटने में बहुत सहायता मिली है। वन विभाग द्वारा जारी वनाग्नि बुलेटिन के अनुसार, पिछले कुछ दिनों से जंगलों में आग लगने की नई घटनाएं सामने नहीं आ रही हैं।

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