उत्तराखंड में गढ़वाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग लंबे समय से की जा रही है। हाल ही में श्रीनगर गढ़वाल के हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय में एक महत्वपूर्ण दो दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई, जिसका उद्देश्य गढ़वाली भाषा के मानकीकरण और व्याकरण पर चर्चा करना था। इस कार्यशाला में गढ़वाली को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग को फिर से उठाया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध गढ़वाली गायक और साहित्यकार गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी ने की। उन्होंने कहा कि गढ़वाली भाषा में विविधता है और इसके एकीकरण की दिशा में कार्य करना एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने जोर दिया कि नई पीढ़ी को भाषा विरासत में सौंपने के लिए यह महत्वपूर्ण है।
इस कार्यक्रम में अन्य वक्ताओं ने भी गढ़वाली भाषा के महत्व और उसके मानकीकरण की आवश्यकता पर बल दिया। साथ ही, यह भी घोषणा की गई कि गढ़वाली भाषा को प्रवासियों को सिखाने के लिए ऑनलाइन कक्षाएं आयोजित की जाएंगी, जिससे भाषा को अधिक लोगों तक पहुंचाया जा सके।
आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग के तहत, गढ़वाली और कुमाऊनी जैसी स्थानीय भाषाओं को संवैधानिक मान्यता दिलाने की कोशिशें जारी हैं।