उत्तराखंड के मुनस्यारी क्षेत्र के भूतहा गांव गदतिर में रहने वाली 80 वर्षीय हीरा देवी आज एक प्रेरणादायक उदाहरण बन गई हैं। अकेलेपन और प्रवास से खाली हो चुके गांव के बीच अपनी भैंस के साथ रहने वाली यह अनपढ़ महिला अब एक अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं।
हीरा देवी ने हाल ही में ‘पाइरे’ नामक फिल्म में मुख्य भूमिका निभाई है, जो उनके जीवन की सच्ची कहानी पर आधारित है। यह फिल्म विनोद कापड़ी द्वारा निर्देशित है और 28वें टालिन ब्लैक नाइट्स अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में अपना विश्व प्रीमियर करेगी। फिल्म एक बुजुर्ग जोड़े की मार्मिक प्रेम कहानी को दर्शाती है, जो पहाड़ों के संघर्षपूर्ण जीवन को उजागर करती है।
कैसे बनीं फिल्म का हिस्सा?
2018 में फिल्म की पटकथा लिखने वाले कापड़ी ने गांव की वास्तविकता को दर्शाने के लिए स्थानीय कलाकारों को कास्ट करने का निर्णय लिया। हीरा देवी की खोज तब हुई जब वह जंगल से चारा लाते हुए दिखीं। उनके स्वाभाविक अभिनय कौशल और गायकी के शौक ने कापड़ी को उन्हें इस भूमिका के लिए उपयुक्त पाया।
शुरुआत में हीरा देवी इस भूमिका को लेकर झिझक रही थीं। उनका मुख्य कारण था अपनी भैंस, जो उनके लिए परिवार जैसी है, को अकेला छोड़ने की चिंता। लेकिन अपने बेटे और फिल्म निर्माताओं के समझाने पर उन्होंने भूमिका स्वीकार कर ली।
अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कदम
जब फिल्म को एस्टोनिया के टालिन महोत्सव के लिए चुना गया, तो हीरा देवी को फिर से अपनी भैंस की चिंता हुई। उनकी बेटी ने उनकी अनुपस्थिति में भैंस की देखभाल की जिम्मेदारी संभालने का वादा किया। इसके बाद, हीरा देवी, कापड़ी और उनके सह-कलाकार पदम सिंह के साथ फिल्म का प्रतिनिधित्व करने के लिए रवाना हुईं।
एक प्रेरणा
हीरा देवी न केवल एक फिल्म की नायिका हैं, बल्कि उन्होंने यह भी दिखाया है कि सपने देखने की कोई उम्र नहीं होती। उनका यह सफर, छोटे से पहाड़ी गांव से लेकर अंतर्राष्ट्रीय मंच तक, उन सभी के लिए प्रेरणा है जो अपने सपनों को सच करना चाहते हैं।
यह कहानी न केवल उत्तराखंड के पहाड़ी जीवन की झलक देती है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे सच्ची प्रतिभा को पहचानने और प्रोत्साहित करने से अद्भुत कहानियां जन्म ले सकती हैं।