उत्तराखंड के प्रगतिशील किसान नरेंद्र मेहरा ने जैविक खेती के क्षेत्र में एक नई मिसाल कायम की है। जैविक खेती को बढ़ावा देने और पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें पूरे क्षेत्र में एक विशेष पहचान दिलाई है।
नरेंद्र मेहरा ने फसल अवशेषों को खेत में जलाने की परंपरा को समाप्त करने के लिए एक क्रांतिकारी कदम उठाया है। उन्होंने पूसा डीकंपोजर का उपयोग कर खेतों में बचे अवशेषों को जैविक खाद में बदलने का सफल प्रयोग किया। इसके लिए उन्होंने 200 लीटर पानी में 2 किलो गुड़ मिलाकर तैयार घोल का उपयोग किया, जो खेतों में छिड़कने के बाद 55-60 दिनों में अवशेषों को पूरी तरह जैविक खाद में परिवर्तित कर देता है।
यह तकनीक न केवल मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करती है, बल्कि कार्बन की मात्रा बढ़ाने और सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि करने में भी सहायक है। इससे किसानों की इनपुट लागत में कमी आती है और खेतों में उन्नत और टिकाऊ फसल उत्पादन संभव होता है।
नरेंद्र मेहरा के इस प्रयास में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) का भी सहयोग मिला है। उन्होंने जोर देकर कहा कि फसल अवशेष जलाने से पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचता है, जबकि इन अवशेषों को डीकंपोज कर खेतों में जैविक खाद के रूप में उपयोग करने से पर्यावरण को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होता।
नरेंद्र मेहरा की यह पहल न केवल जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है, बल्कि किसानों को सशक्त बनाकर उन्हें पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक भी कर रही है। उनका यह प्रयास अन्य किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया है।