हिमवंत कवि चन्द्रकुँवर बर्त्वाल की जयंती के उपलक्ष्य में, हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा चौरास परिसर के एकेडमिक एक्टिविटी सेंटर में “हिमवंत कवि चन्द्रकुँवर बर्त्वाल की साहित्यिक विरासत” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का सफल आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी का उद्देश्य चन्द्रकुँवर बर्त्वाल के साहित्यिक योगदान को राष्ट्रीय स्तर पर उजागर करना और उनकी रचनाओं को शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में समावेश हेतु प्रेरित करना था।
कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ, जिसमें विश्वविद्यालय के गणमान्य पदाधिकारी, प्रोफेसर, विद्वान, शोधार्थी, और छात्र-छात्राएँ उपस्थित रहे। संगोष्ठी की संयोजक और हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. गुड्डी बिष्ट पंवार ने माननीय कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश सिंह को उनके अमूल्य सहयोग एवं मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद दिया तथा सभी आगंतुक अतिथियों, वक्ताओं, और प्रतिभागियों का हार्दिक स्वागत किया। उन्होंने चन्द्रकुँवर बर्त्वाल के साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डालते हुए संगोष्ठी के उद्देश्यों को स्पष्ट किया। प्रो. बिष्ट ने कहा, “चन्द्रकुँवर बर्त्वाल हिंदी साहित्य के एक अनमोल रत्न हैं, जिनकी रचनाओं में प्रकृति, राष्ट्रीय चेतना, और मानवीय संवेदनाओं का अनुपम समन्वय देखने को मिलता है। यह संगोष्ठी उनकी साहित्यिक विरासत को नई पीढ़ी तक पहुँचाने का एक प्रयास है।”
विशिष्ट अतिथि प्रो. मोहन सिंह पंवार, विभागाध्यक्ष (भूगोल) और संकायाध्यक्ष (भर्ती एवं प्रोन्नति), हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय, ने अपने उद्बोधन में चंद्रकुँवर बर्त्वाल की शोध पीठ स्थापित करवाने का आश्वासन देते हुए कहा, “चन्द्रकुँवर बर्त्वाल की रचनाएँ हिंदी साहित्य में एक अनूठा स्थान रखती हैं। उनकी कविताओं में हिमालय की भव्यता और मानवीय भावनाओं का गहरा चित्रण है। गढ़वाल विश्वविद्यालय में उनकी शोध पीठ की स्थापना एक ऐतिहासिक कदम होगा, जो उनके साहित्य को और अधिक शोध और अध्ययन का विषय बनाएगा।” उन्होंने विश्वविद्यालय के इस प्रयास को सराहा और इसे भविष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।
मुख्य वक्ता प्रो. नवीन चंद्र लोहनी, कुलपति, उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी, ने चन्द्रकुँवर बर्त्वाल के बहुआयामी व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “चन्द्रकुँवर बर्त्वाल न केवल एक प्रकृति प्रेमी कवि थे, बल्कि उनकी रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना और मानवीय संवेदनाओं का भी समावेश है। उनके साहित्य पर व्यापक शोध कार्य होना चाहिए। उनकी कविताओं को स्कूल और विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में बड़े पैमाने पर शामिल किया जाना चाहिए ताकि नई पीढ़ी उनके विचारों और दर्शन से परिचित हो सके।” प्रो. लोहनी ने बर्त्वाल की रचनाओं को वैश्विक स्तर पर ले जाने की आवश्यकता पर बल दिया।
विशिष्ट वक्ता प्रो. मृदुला जुगरान, पूर्व विभागाध्यक्ष और संकायाध्यक्ष, हिंदी विभाग, ने चन्द्रकुँवर बर्त्वाल को प्रेम, पीड़ा, और मृत्यु बोध का कवि बताया। उन्होंने कहा, “बर्त्वाल की कविताएँ मानव मन की गहरी अनुभूतियों को व्यक्त करती हैं। उनकी रचनाओं में हिमालय का सौंदर्य और जीवन की नश्वरता का दर्शन एक साथ झलकता है।”
श्री गौरव सिंह बर्त्वाल, सचिव, चन्द्रकुँवर बर्त्वाल शोध संस्थान, देहरादून, ने बताया कि संस्थान द्वारा बर्त्वाल के अप्रकाशित साहित्य को प्रकाशित करने का कार्य प्रगति पर है। उन्होंने कहा, “हमारा प्रयास है कि उनकी अनछुई रचनाएँ दुनिया के सामने आएँ और उनके साहित्यिक योगदान को व्यापक मान्यता मिले।”
श्री हरीश गुसांई, अध्यक्ष, चन्द्रकुँवर स्मृति शोध संस्थान, अगस्त्यमुनि, ने जोर देकर कहा कि “चन्द्रकुँवर की कविताओं को स्कूलों के पाठ्यक्रम में बड़े पैमाने पर शामिल करना चाहिए। उनकी रचनाएँ बच्चों को प्रकृति और संस्कृति के प्रति संवेदनशील बनाएँगी।
डा संजय पांडे द्वारा प्रस्तुत चंद्र कुंवर की कविताओं का शानदार गायन किया गया। उनकी कविताओं में पीड़ा, टीस और कसक को उत्पन्न करता है।
संगोष्ठी में डॉ. सूरज पंवार, मनु पंवार, अनुसूया प्रसाद मलासी, दीपक बेंजवाल, डॉ. मानवेन्द्र बर्त्वाल, डॉ. सृजना राणा, डॉ. शशिबाला, डॉ. सविता मैठाणी, डॉ. गौरीश नंदिनी काला, डॉ. आकाशदीप, रेशमा पंवार, शुभम थपलियाल, और अन्य गणमान्य विद्वानों ने सक्रिय भागीदारी की। द्वितीय सत्र में लगभग 40 शोध-पत्र ऑनलाइन एवं ऑफलाइन माध्यमों पर प्रस्तुत किए गए, जिनमें बर्त्वाल की कविताओं में प्रकृति चित्रण, राष्ट्रीय चेतना, छायावाद, और मृत्यु बोध जैसे विषयों पर गहन चर्चा हुई। कुछ प्रतिभागियों ने उनकी कविताओं को गीत के रूप में प्रस्तुत किया, जिसने संगोष्ठी को और अधिक जीवंत बना दिया। शोधपत्र प्रस्तुत करने वाले प्रतिभागियों को अतिथियों द्वारा प्रमाणपत्र भी वितरित किए गए।
प्रो. गुड्डी बिष्ट पंवार ने अपने समापन उद्बोधन में सभी अतिथियों, वक्ताओं, शोधार्थियों, और कर्मचारियों का धन्यवाद ज्ञापन किया। उन्होंने कहा, “यह संगोष्ठी चन्द्रकुँवर बर्त्वाल की साहित्यिक विरासत को जीवंत रखने और इसे राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हम भविष्य में भी ऐसे आयोजनों के माध्यम से उनके योगदान को बढ़ावा देंगे।” सत्र का संचालन डॉ. सविता मैठाणी और डॉ. गौरीश नंदिनी काला द्वारा किया गया।