देहरादून। आईसीएआर–भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान (ICAR–IISWC), देहरादून के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रभारी (पीएमई एवं केएम इकाई) डॉ. एम. मुरुगानंदम ने कहा कि मत्स्य पालन उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में आजीविका और उद्यमिता के लिए उच्च संभावनाओं वाला तेजी से उभरता हुआ क्षेत्र है। उन्होंने यह बात 26 से 29 दिसंबर 2025 तक देहरादून में आयोजित सहकारी व्यापार मेला के दौरान किसानों, स्वयं सहायता समूहों (SHGs), किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) और आगंतुकों को संबोधित करते हुए कही। यह मेला जिला सहकारी विभाग, उत्तराखंड सरकार द्वारा आयोजित किया गया था।
डॉ. मुरुगानंदम ने प्राकृतिक संसाधनों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि उत्तराखंड सहित देश के विभिन्न हिस्सों में नदियों, नालों, झरनों, वर्षा एवं वर्षा-अपवाह के रूप में प्रचुर जल संसाधन उपलब्ध हैं। उन्होंने बताया कि देहरादून में औसतन लगभग 1650 मिमी वार्षिक वर्षा होती है, जबकि भारत की औसत वर्षा लगभग 1110 मिमी है, जो वैश्विक औसत के बराबर या उससे अधिक है। यह स्थिति भारत को जल-समृद्ध देशों की श्रेणी में रखती है और जल आधारित उत्पादन प्रणालियों, विशेष रूप से मत्स्य पालन एवं जलीय कृषि, के लिए बड़े अवसर प्रदान करती है।
उन्होंने कहा कि ट्राउट पालन, बायो-फ्लॉक प्रणाली, पारंपरिक फार्म तालाब और जल-संचयन संरचनाओं जैसी उच्च मूल्य और कम मात्रा वाली गतिविधियाँ तेजी से अपनाई जा रही हैं। इन नवाचारी प्रणालियों से किसानों की आय और उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है।
डॉ. मुरुगानंदम ने जानकारी दी कि भारत में वर्तमान में लगभग 19.5 मिलियन टन मछली का वार्षिक उत्पादन हो रहा है, जबकि उत्तराखंड में कुछ वर्ष पूर्व जहां उत्पादन लगभग 7,000 टन था, वहीं अब यह बढ़कर करीब 70,000 टन तक पहुंच गया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह वृद्धि मुख्य रूप से ट्राउट उत्पादन और सरकारी सहयोगी योजनाओं के कारण संभव हुई है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि राज्य में वर्तमान उत्पादन अभी भी उपभोग और आजीविका की मांग की तुलना में कम है, जिससे इस क्षेत्र में उद्यमिता और रोजगार सृजन की अपार संभावनाएं मौजूद हैं।
उन्होंने किसानों से मत्स्य पालन से जुड़ी सरकारी योजनाओं, संस्थागत सहायता और सहकारी मॉडल के प्रति जागरूक रहने का आह्वान किया। उन्होंने बताया कि मत्स्य बीज उत्पादन, चारा निर्माण, मछली उत्पादन, परिवहन, मूल्य संवर्धन, विपणन और वित्तपोषण जैसे क्षेत्रों में सहकारिताओं, SHGs और FPOs के माध्यम से बड़े अवसर उपलब्ध हैं।
अपने संबोधन में डॉ. मुरुगानंदम ने नदियों और जलीय जैव विविधता के संरक्षण पर भी जोर दिया। उन्होंने महसीर, स्नो ट्राउट और स्पाइनी ईल जैसी स्थानीय और मूल्यवान मछली प्रजातियों के संरक्षण को अत्यंत आवश्यक बताया। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में नदी तटीय क्षेत्रों में रहने वाली लगभग 40 प्रतिशत आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मत्स्य पालन पर निर्भर है, जिससे सतत मत्स्य प्रबंधन का महत्व और बढ़ जाता है।
कार्यक्रम के दौरान प्रतिभागियों ने मत्स्य पालन से जुड़ी तकनीकी जानकारियों की सराहना की और इस क्षेत्र में कार्य करने की गहरी रुचि दिखाई। इस अवसर पर पशुपालन, डेयरी, मत्स्य, स्वास्थ्य विभाग और APEDA के विशेषज्ञों ने भी किसानों एवं उद्यमियों को विभिन्न योजनाओं और अवसरों की जानकारी दी।
उल्लेखनीय है कि यह सहकारी व्यापार मेला संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष–2025 और उत्तराखंड राज्य गठन के रजत जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया, जिसका उद्देश्य स्थानीय उत्पादों, सहकारी संस्थाओं और स्वयं सहायता समूहों को प्रोत्साहित करना था। कार्यक्रम का समन्वय सहकारी विभाग, उत्तराखंड की सुश्री पंकज लता द्वारा किया गया।