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श्री कृष्ण जन्माष्टमी कब मनाई जाए इस पर उत्तराखंड ज्योतिष रत्न का निर्णायक बयान जारी

श्री कृष्ण जन्माष्टमी कब मनाई जाए इस पर उत्तराखंड ज्योतिष रत्न का निर्णायक बयान जारी

देहरादून 5 सितम्बर। प्रत्येक वर्ष के भांति इस वर्ष भी श्री कृष्ण जन्माष्टमी की तिथि पर लोगों के बीच कन्फ्यूजन की स्थिति बनी हुई है, इसका संज्ञान लेते हुए उत्तराखंड ज्योतिष रत्न आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल का निर्णायक बयान जारी हो गया है।

आचार्य चंडी प्रसाद घिल्डियाल ने स्पष्ट रूप से कहा है कि ग्रस्त जीवन वालों को श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत 6 सितंबर को रखना है और वैष्णव संप्रदाय के लोगों को 7 सितंबर को रखना है विश्लेषण करते हुए वह बताते हैं , कि

देशभर में कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी कृष्ण जन्माष्टमी की तिथि को लेकर कनफ्यूजन की स्थिति बनी हुई है। मथुरा में कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 6 सितंबर दिन बुधवार को मनाया जाएगा। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन लोग व्रत रखते हैं और मध्य रात्रि में भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है। मथुरा, वृंदावन समेत यह पर्व विश्वभर में धूमधाम से मनाया जाता है। जब जब पाप और अधर्म हद पार करता है, तब तब भगवान पृथ्वी पर अवतार लेते हैं। श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, वृषभ राशि और बुधवार के दिन हुआ था। इस साल जन्माष्टमी बहुत खास है, क्योंकि यह पर्व बुधवार को ही मनाया जाएगा। हालांकि, जन्माष्टमी की तारीख को लेकर कंफ्यूजन है।

6 सितंबर को बन रहा है जयंती योग

जन्माष्टमी का पर्व भले ही 7 सितंबर को मनाएं मगर 6 सितंबर की रात्रि को भगवान कृष्ण का अभिषेक अवश्य करें। 6 सितंबर की रात्रि को 11 बजे से 1 बजे के मध्य ऐसे योग बन रहे हैं, जो 5249 वर्ष पूर्व भगवान के प्राकट्य के समय बने थे। उन्होंने बताया कि 5249 वर्ष पहले जब भगवान कृष्ण ने अवतार लिया था, वह दिन भी बुधवार था। अष्टमी तिथि व रोहिणी नक्षत्र था। साथ ही योग हर्षण व करण योग कउल्लभ भी था। 6 सितंबर की रात्रि 11 बजे से 1 बजे के मध्य भी इन पांचों योग का संगम 30 वर्ष बाद हो रहा है। इन पांचों योग के मिलन को जयंती योग भी कहा जाता है। इस योग में भगवान का घर पर या पास के मंदिर में पंचामृत से अभिषेक करने का अनंत फल प्राप्त होगा। जन्माष्टमी का व्रत व अन्य उत्सव 7 सितंबर को मना सकते हैं।

सप्तमी और अष्टमी की अवधि
जन्माष्टमी 6 सितंबर को दोपहर 3.37 बजे से होगी
अष्टमी तिथि का समापन 7 सितंबर को शाम 4.14 बजे होगा।

6 सितंबर 2023 : गृहस्थ जीवन वालों के लिए इस दिन जन्माष्टमी मनाना शुभ रहेगा। इस दिन रोहिणी नक्षत्र और रात्रि पूजा में पूजा का शुभ-मुहूर्त भी बन रहा है। 6 सितंबर को ही मथुरा में भी जन्माष्टमी मनाई जाएगी।

7 सितंबर 2023 : ज्योतिष विज्ञान के अंतरराष्ट्रीय सितारे डॉ चंडी प्रसाद के अनुसार, इस दिन वैष्णव संप्रदाय के लोग जन्माष्टमी मनाएंगे। साधु-संत के लिए कृष्ण की पूजा का अलग विधान है। शास्त्रों में पंचदेवों के उपासक (गृहस्थ) यानी स्मार्त संप्रदाय के लोगों के लिए कृष्ण की उपासना अलग तरीके से बताई गई है। इस दिन दही हांडी उत्सव भी मनेगा।

जन्माष्टमी पर रोहिणी नक्षत्र
रोहिणी नक्षत्र शुरू : 6 सितंबर, सुबह 9:20 बजे
रोहिणी नक्षत्र समाप्त : 7 सितंबर, सुबह 10:25 बजे

जन्माष्टमी पूजा मुहूर्त
श्रीकृष्ण पूजा का समय : 6 सितंबर, रात्रि 11.57 बजे से 7 सितंबर प्रात: 12:42 बजे तक (करीब पौन घंटा

कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि
जन्माष्टमी के मौके पर भक्त उपवास रखते हैं और इस दिन भगवान कृष्ण की विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती है। कान्हा का जन्म मध्य रात्रि में हुआ था इसलिए जन्माष्टमी के दिन मध्यरात्रि में घर में लड्डू गोपाल की प्रतिमा का जन्म करवाया जाता है और ‘नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की’ के जयकारे लगाए जाते हैं। फिर बाल स्वरूप कान्हा को दही, घी, दूध, शहद, गंगाजल आदि पंचामृत से अभिषेक कराया जाता है। इसके बाद सुंदर वस्त्र धारण कराए जाते हैं और फिर चंदन लगाया जाता है। इसके बाद धूप दीप से पूजा अर्चना की जाती है ,और भजन कीर्तन किए जाते हैं। पूजा अर्चना के बाद कान्हा को भोग लगाया जाता है। कान्हा को माखन मिश्री बहुत पसंद है इसलिए भोग में इसको जरूर रखें। इसके बाद सभी में यह प्रसाद वितरित किया जाता है।

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