देहरादून: शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास उत्तराखंड प्रांत एवं देवभूमि उत्तराखंड विश्वविद्यालय, देहरादून के भारतीय ज्ञान परंपरा उत्कृष्ट केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय शैक्षिक कार्यशाला सह अभ्यास वर्ग का शुभारंभ हुआ। उद्घाटन समारोह में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के क्षेत्रीय संयोजक जगराम, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उत्तराखंड प्रांत के प्रांत कार्यवाह दिनेश सेमवाल, न्यास के प्रांत संरक्षक प्रो. नीरज तिवारी, प्रांत अध्यक्ष प्रो. विनोद कुमार एवं प्रदेश संयोजक डॉ. अशोक कुमार मैन्दोला ने मां सरस्वती के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्वलित किया।
डॉ. अशोक कुमार मैन्दोला ने न्यास की विकास यात्रा पर प्रकाश डालते हुए बताया कि भारतीय शिक्षा प्रणाली में एनसीईआरटी की पुस्तकों में सुधार के लिए न्यास ने न्यायपालिका तक की यात्रा की, जिसके परिणामस्वरूप आज एनसीईआरटी की पुस्तकों में परिवर्तन हुआ है। उन्होंने कहा कि न्यास शिक्षा बचाओ आंदोलन के तहत विभिन्न गतिविधियों का आयोजन कर समाज और राष्ट्र के हित में नित नए कार्यों के लिए प्रतिबद्ध है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत कार्यवाह डॉ. दिनेश सेमवाल ने मुख्य वक्ता के रूप में कहा कि भारतीय शिक्षा प्रणाली भारत केंद्रित होनी चाहिए। उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा को आज की महत्वपूर्ण आवश्यकता बताते हुए तत्काल शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन लाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
देवभूमि उत्तराखंड विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. प्रीति कोठियाल ने शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय हर स्तर पर न्यास के कार्यक्रमों में सहयोग करने के लिए संकल्पबद्ध है। उन्होंने कहा कि शिक्षा ही संस्कारों की आधारशिला है और आज के समय में नैतिक मूल्यों का पतन शिक्षा में चिंता का विषय है।
प्रथम सत्र में न्यास के क्षेत्रीय संयोजक जगराम ने शिक्षा के माध्यम से समाज परिवर्तन की आवश्यकता पर बल दिया। द्वितीय सत्र में न्यास के प्रांत संरक्षक प्रो. नीरज तिवारी ने शिक्षा क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों की जिम्मेदारियों पर प्रकाश डाला। तृतीय सत्र में डॉ. नवीन चंद्र पंत ने समाज परिवर्तन के पांच मुख्य बिंदुओं पर अपने विचार व्यक्त किए। चतुर्थ सत्र में डॉ. अनुज शर्मा ने कार्यकर्ता विकास में प्रवास की भूमिका पर विचार रखे।
इस कार्यक्रम में प्रदेश भर के विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, विद्यालयों के शिक्षक, शिक्षार्थी, शोधार्थी एवं समाज के विभिन्न वर्गों से लगभग 200 लोग उपस्थित रहे।