हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग, बिड़ला परिसर में हिंदी के प्रख्यात आलोचक और कवि विजयदेव नारायण साही का शताब्दी जन्मोत्सव मनाया गया, जिसमें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर श्रीप्रकाश शुक्ल मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित हुए। प्रो. शुक्ल ने अपने उद्बोधन में विजयदेव नारायण साही के जीवन और साहित्यिक योगदान पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि साही, अंग्रेजी के प्रोफेसर होते हुए भी हिंदी साहित्य के प्रति अत्यंत समर्पित थे। वे अपने समय में आलोचना के विविध विमर्शों को लेकर चर्चित रहे और भारतीय जीवन दर्शन की सधुक्कड़ी प्रवृत्ति से गहराई से प्रभावित थे। प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने इस बात पर जोर दिया कि साही ने साहित्य और आलोचना को केवल कला के रूप में नहीं देखा, बल्कि इसे सामाजिक और दार्शनिक चिंतन का माध्यम माना। उन्होंने साहित्यिक विमर्शों में अपनी आलोचनात्मक दृष्टि के जरिए नए विचार और दृष्टिकोण प्रस्तुत किए, जो आज भी प्रासंगिक हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं प्रो. मंजुला राणा ने साही के आलोचनात्मक सिद्धांतों पर चर्चा की। उन्होंने साही की आलोचना लघुमानव के बहाने का संदर्भ देते हुए कहा कि साही जी आलोचना को साहित्य का दर्शनशास्त्र मानते थे जिस दृष्टिकोण पर गहन चिन्तन हिंदी साहित्य को गौरवान्वित करता है। इस अवसर पर हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. गुड्डी बिष्ट पँवार ने भी साही के साहित्यिक योगदान पर अपने विचार व्यक्त किए और उन्होंने छात्र-छात्राओं को प्रेरित करते हुए कहा कि विजयदेव नारायण साही के साहित्य को विद्यार्थी जरूर पढ़ें और उनके विचारों से जुड़ें। उन्होंने कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए सभी का धन्यवाद अर्पित किया।
कार्यक्रम के सह-संयोजक डॉ. अमित कुमार शर्मा ने प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल का परिचय प्रस्तुत किया और कार्यक्रम का सफल संचालन किया। इस अवसर पर श्रीमती सुनीता शुक्ल, प्रो. आशुतोष गुप्त (संस्कृत विभाग), डॉ. कपिल पंवार, हिंदी विभाग, श्री लवकेश कुमार, श्री रोशन प्रसाद, श्री नीरज कुमार (अंग्रेजी विभाग) मधु, आकाशदीप, प्रियंका, शुभम, सुनीता सहित सभी शोद्यार्थी, छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।