भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान (ICAR–IISWC), देहरादून, विकसित कृषि संकल्प अभियान (VKSA)-2025 के अंतर्गत किसानों और अन्य हितधारकों को वैज्ञानिक फसल सलाह, प्रमुख खरीफ फसलों के लिए कार्यान्वयन पैकेज (PoPs), जल और नमी संरक्षण तकनीकों, मृदा स्वास्थ्य के रखरखाव तथा भूमि क्षरण की रोकथाम के प्रति जागरूक करने में सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है।
अभियान के बारहवें दिन, दिनांक 9 जून 2025 को, संस्थान के वैज्ञानिकों की टीमों ने 19 गांवों का दौरा किया, जहां उन्होंने किसानों को खरीफ फसल प्रबंधन से जुड़ी चुनौतियों का समाधान प्रदान करने हेतु प्रत्यक्ष सहायता प्रदान की। यह प्रयास स्थानीय आवश्यकताओं और संसाधनों के अनुसार विशिष्ट, स्थान-विशेष की सलाहों के वितरण पर केंद्रित रहा।
बातचीत के दौरान किसानों ने कई आम समस्याओं को रेखांकित किया—जैसे वन्यजीवों द्वारा फसलों को नुकसान, सिंचाई अवसंरचना की कमी, गुणवत्तायुक्त आदानों की अनुपलब्धता, घास की अधिकता, कीट व रोग का प्रकोप तथा उत्पाद के विपणन में कठिनाइयाँ।
इन चुनौतियों के उत्तर में, वैज्ञानिकों ने जल संचयन, जीवनरक्षक सिंचाई, नमी संरक्षण और मृदा स्वास्थ्य सुधार से संबंधित व्यावहारिक तकनीकों व सलाहों को साझा किया। भूमि की वहन क्षमता और उपलब्ध संसाधनों के अनुसार फसलों के चयन पर विशेष बल दिया गया।
पहाड़ी क्षेत्रों में, नियमित रूप से खेती की जा रही भूमि का अधिकतम उपयोग खाद्यान्न, नकदी व सब्जी फसलों के मिश्रण के लिए करने की सलाह दी गई। आंशिक रूप से उपयोग में ली जा रही भूमि पर कम पानी की आवश्यकता वाली खाद्य फसलें जैसे लघु मिलेट्स (मंडुआ, झींगोरा) उगाने का सुझाव दिया गया, ताकि वर्षा आधारित परिस्थितियों का लाभ उठाया जा सके। कभी-कभार उपयोग में ली जाने वाली या परती भूमि को वैकल्पिक कृषि उपयोग जैसे वृक्षारोपण या वृक्षों के साथ अंतरवर्ती फसल प्रणाली में परिवर्तित करने की सिफारिश की गई।
ढलानदार व क्षरणग्रस्त भूमि पर जल एवं नमी संरक्षण के उपायों जैसे ट्रेंचिंग, बंडिंग और टेरेसिंग को अपनाने की सलाह दी गई। अदरक, धान और मक्का (अंतरवर्ती खेती) के खेतों में हरे या सूखे पत्तों से मल्चिंग और जैविक खाद देने की सिफारिश की गई। किसानों को अंतरवर्ती फसल प्रणाली पर भी मार्गदर्शन दिया गया। स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री जैसे सनहेम्प (क्रोटालेरिया जुनेया), ढैंचा (सेसबानिया अकुलेटा), वन पत्तियां और देशी घासों को मल्चिंग और मृदा उर्वरीकरण के लिए सुझाया गया, जिसे अपनाने के लिए कई किसान आगे भी आए।
जल संचयन, भंडारण, कुशल वितरण और अनुप्रयोग की योजना पर बल दिया गया, ताकि जल की कमी से होने वाले फसल नुकसान से बचा जा सके। कम जल मांग वाली फसलों जैसे तिलहन, दलहन और लघु मिलेट्स (तिल, मूंग दाल, मंडुआ आदि) को पोषण और नकदी फसलों के रूप में बढ़ावा देने की सिफारिश की गई।
प्रदत्त समाधान: प्रमुख चुनौतियों के समाधान हेतु वैज्ञानिकों ने फसल और पशुपालन दोनों के लिए अनुकूलित सलाह प्रदान की। इनमें उपयुक्त फसल चक्र, कीट और रोग नियंत्रण उपाय, तथा पशु आहार व औषधियों संबंधी सुझाव शामिल थे। किसानों को सतत तकनीकी सहयोग के लिए संपर्क सूत्र भी प्रदान किए गए। ग्राम प्रधानों, प्रगतिशील किसानों और स्थानीय युवाओं को अभियान के उद्देश्यों और वैज्ञानिक खेती की व्यापक संभावनाओं के बारे में जागरूक किया गया, जिससे खाद्य सुरक्षा और आजीविका में सुधार हो सके।
9 जून को, सात विशेषज्ञ टीमों ने—प्रमुख वैज्ञानिकों एवं वरिष्ठ वैज्ञानिकों डॉ. अम्बरीश कुमार, डॉ. लेखचंद, इं. एस. एस. श्रीमाली, डॉ. विभा सिंगल, डॉ. श्रीधर पात्र, डॉ. रमन जीत सिंह और डॉ. इंदु रावत के नेतृत्व में—देहरादून और हरिद्वार जिलों के विभिन्न ब्लॉकों में क्षेत्रीय दौरे किए। इन वैज्ञानिकों ने 870 किसानों तक सीधा पहुंच बनाकर खरीफ फसल प्रबंधन पर विस्तृत सलाह दी, सरकारी योजनाओं और विकास कार्यक्रमों की जानकारी साझा की, और सतत कृषि विकास को प्रोत्साहित किया।
जनसंचार समन्वय डॉ. एम. मुरुगानंदम (प्रमुख वैज्ञानिक, ICAR-IISWC) के नेतृत्व में किया गया, जिन्होंने स्थानीय प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ मिलकर व्यापक प्रसार सुनिश्चित किया। ये प्रयास किसानों और हितधारकों तक कृषि तकनीकों, फसल सलाहों, तथा मृदा व जल संरक्षण उपायों की समयबद्ध और समग्र जानकारी पहुंचाने में सहायक रहे।
VKSA-2025 अभियान (29 मई – 12 जून 2025) का नेतृत्व संस्थान के निदेशक डॉ. एम. मधु कर रहे हैं, जिनका समन्वय सहयोग डॉ. बांके बिहारी और डॉ. एम. मुरुगानंदम (प्रमुख वैज्ञानिक), श्री अनिल चौहान (सीटीओ), इं. अमित चौहान (एक्टो), श्री प्रवीण तोमर (एसटीओ), तथा श्रीमती मीना पंत (प्रमुख वैज्ञानिक) द्वारा किया जा रहा है।