उत्तराखंड में अब प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ते कदमों के बीच कपूर (Cinnamomum camphora) की खुशबू फैलने वाली है। सगंध पौध केंद्र, सेलाकुई के दस वर्षों के गहन शोध के बाद कपूर की खेती को लेकर बेहद सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। इससे राज्य के किसानों को पारंपरिक खेती छोड़कर एक बेहतर, सुगंधित और लाभदायक विकल्प मिलने जा रहा है।
कपूर: एक बहुपयोगी औषधीय वृक्ष
कपूर एक सदाबहार वृक्ष है जिसकी पत्तियों से निकाला गया तेल पारंपरिक चिकित्सा, धार्मिक अनुष्ठानों, साबुन, क्रीम और परफ्यूम उद्योग में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है। देश में इसकी खेती में भारी कमी आई है, जिससे यह प्रजाति विलुप्ति की कगार पर पहुंच गई है।
कृषि छोड़ रहे किसानों के लिए उम्मीद की किरण
उत्तराखंड में जंगली जानवरों से फसल को नुकसान और सिंचाई की कमी जैसी समस्याओं के चलते कृषि भूमि तेजी से खाली हो रही है। इस संकट से जूझ रहे किसानों के लिए कपूर की खेती एक सार्थक विकल्प बन सकती है क्योंकि:
- कपूर के पेड़ों को जंगली जानवर नुकसान नहीं पहुंचाते।
- इन्हें ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती।
- ये साल भर हरे-भरे रहते हैं, जिससे पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिलेगा।
कई बीमारियों में उपयोगी, बाजार में अच्छी मांग
शोध में पता चला है कि कपूर के पेड़ों में तीन प्रकार के कीमोटाइप्स पाए जाते हैं – कैंफोरा, 1.8 सिनेओल और मिश्रित प्रकार। इनकी पत्तियों से निकला तेल एंटीसेप्टिक, दर्द निवारक, सूजनरोधी, त्वचा रोग, जोड़ों के दर्द और सांस संबंधी रोगों में बेहद उपयोगी है।
अच्छी आमदनी का जरिया
- कपूर की पत्तियों से 2-3% सगंध तेल निकाला जा सकता है।
- बाजार में एक लीटर कपूर तेल की कीमत 800 से 1000 रुपये तक है।
- एक किसान सालाना 2.5 से 3 लाख रुपये तक की आमदनी कर सकता है।
प्रदेश में बढ़ेगी एरोमा खेती
सगंध पौध केंद्र के निदेशक नृपेंद्र सिंह चौहान के अनुसार, संस्थान राज्य में कपूर की खेती को बढ़ावा देगा। इससे न केवल किसानों को आर्थिक संबल मिलेगा बल्कि जैव ऊर्जा व औद्योगिक उपयोग के लिए भी यह पौधा महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
उत्तराखंड में प्राकृतिक खेती की दिशा में यह प्रयास किसानों के लिए आर्थिक, पर्यावरणीय और औषधीय लाभों से भरपूर संभावनाएं खोल रहा है।