उत्तराखंड की स्थानीय भाषाओं को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाने की पहल
रेनबो न्यूज़ ब्यूरो। उत्तराखंड की स्थानीय बोलियों को नई तकनीक से जोड़ने के लिए एक ऐतिहासिक पहल शुरू होने जा रही है। इस 29 अक्टूबर को गढ़वाली, कुमाऊनी और जौनसारी भाषाओं को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के जरिए डिजिटल दुनिया से जोड़ा जाएगा।
इस परियोजना का उद्देश्य स्थानीय भाषाओं को तकनीकी माध्यम से संरक्षित करना और उन्हें भविष्य की भाषा-प्रणालियों में शामिल करना है।
AI के ज़रिए होगी भाषाई पहचान और अनुवाद
इस कार्यक्रम के तहत लोक विज्ञान, तकनीकी नवाचार और भाषाई संरक्षण को एक मंच पर लाया जाएगा। एआई के माध्यम से इन भाषाओं के शब्दकोश, उच्चारण, और सांस्कृतिक अर्थ को डिजिटाइज किया जाएगा, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी अपनी मातृभाषा को समझ और उपयोग कर सकें।
इससे उत्तराखंड की भाषाओं को राष्ट्रीय और वैश्विक मंच पर पहचान मिलेगी। यह परियोजना उत्तराखंड में भाषाई विविधता के संरक्षण और प्रचार के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगी।
सचिदानंद सेमवाल कर रहे हैं नेतृत्व
इस अभिनव पहल का नेतृत्व अमेरिका में निवासरत सचिदानंद सेमवाल कर रहे हैं, जो भारतीय मूल के प्रतिष्ठित आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस विशेषज्ञ हैं। उनका मूल निवास उत्तराखंड के टिहरी जिले के मखल गाँव में है।
वह कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के साथ मिलकर गढ़वाली, जौनसारी और कुमाऊनी जैसी भाषाओं को तकनीकी रूप से सशक्त बनाने का कार्य कर रहे हैं।
भविष्य में अन्य बोलियाँ भी होंगी शामिल
आगामी चरणों में इस पहल के तहत उत्तराखंड की अन्य बोलियों को भी AI से जोड़ने की योजना है। इससे न केवल भाषा का संरक्षण होगा बल्कि स्थानीय युवाओं के लिए डिजिटल शिक्षा और रोजगार के नए अवसर भी खुलेंगे।
यह परियोजना उत्तराखंड की भाषाई विरासत को आधुनिक तकनीक के साथ जोड़ने वाला एक क्रांतिकारी कदम है, जो आने वाले वर्षों में प्रदेश की सांस्कृतिक पहचान को और मजबूत बनाएगा।
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