कला शब्दों की मोहताज नहीं, ग्राफिक एरा में जनजाति हस्तशिल्पकारों के उत्पादों की प्रदर्शनी

कला शब्दों की मोहताज नहीं, ग्राफिक एरा में जनजाति हस्तशिल्पकारों के उत्पादों की प्रदर्शनी

देहरादून, 12 नवंबर । ग्राफिक एरा में देशभर से आए हैं जनजातीय कलाकारों और शिल्पकारों ने अपनी अनूठी कृतियों से भारत की विविधता और सांस्कृतिक विरासत की झलक को एक ही जगह पर उकेरा। उत्तराखंड की महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती रेखा आर्या ने कहा कि कलाकार की कला शब्दों की मोहताज नहीं होती, एक सच्चा कलाकार मिट्टी, धागे, धातु और रंगों के माध्यम से वह कह जाता है जिसे शब्द भी व्यक्त नहीं कर पाते।

ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी में क्राफ्टकथा चैप्टर 3 नाम से विशेष कार्यक्रम को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि देवभूमि उत्तराखंड वह भूमि है जहां प्रकृति, परंपरा, संस्कृति, जनजातीय जीवन और कला एक दूसरे में रचे बसे हैं। हमारे कारीगर और शिल्पकार केवल रचनाकार नहीं बल्कि भारत की आत्मा के वाहक है, जो अपनी कृतियों के माध्यम से सांस्कृतिक पहचान और भावनाओं को पीढ़ी दर पीढ़ी संजोए हुए हैं। उन्होंने ग्राफिक एरा की सराहना करते हुए कहा कि यह संस्थान आज के युवाओं को भारत की लोक एवं जनजातीय कलाओं से जोड़ने का सशक्त माध्यम बन रहा है। 

श्रीमती रेखा आर्या ने क्राफ्टकथा में आयोजित क्राफ्ट झरोखा प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। यह प्रदर्शनी भारत की जनजातीय कलाओं और हस्तशिल्प परंपराओं का एक जीवंत संगम है जहां देश के विभिन्न कोनों से आए कारीगरों ने अपनी कला के माध्यम से संस्कृति, प्रकृति और जीवन के गहरे संबंध को साकार किया। प्रदर्शनी में गोंड पेंटिंग, ढोकरा मेटल क्राफ्ट, टोडा एंब्रायडरी, मोलेला टेराकोटा आर्ट, साबाई ग्रास वीविंग, लंबानी एंब्रॉयडरी और बोडो हैंडलूम जैसी लोक कलाओं को इतनी अद्भुता से प्रस्तुत किया गया कि हर कला में भारत की विविधता और सृजनशीलता की अनोखी झलक दिख रही थी। हर स्टॉल सिर्फ कला का प्रदर्शन नहीं था बल्कि एक जीवंत कहानी भी थी, उन कारीगरों की जिन्होंने अपनी पीढ़ियों से संजोई परंपराओं को अपनी कला और मेहनत से आकर दिया। मिट्टी, धागे, धातु और रंगों से सजे यह शिल्प भारत की आत्मा के प्रतीक बनकर उभरे। श्रीमती रेखा आर्या ने सभी राज्यों के जनजाति कलाकारों के हर स्टॉल पर जाकर उनके उत्पादों और शिल्पों की जानकारी ली।

कार्यक्रम में शिल्प संवाद पैनल डिस्कशन में कला, शिक्षा और नीति निर्माण से जुड़े विशेषज्ञों ने जनजातीय कलाओं के संरक्षण और उनके भविष्य पर विचार साझा किया। इस चर्चा में मुख्यमंत्री के अपर सचिव और उत्तराखंड के जनजातीय कल्याण निदेशक श्री संजय सिंह टोलिया, ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी के कुलपति डा. अमित आर. भट्ट, आईका की गवर्निंग बॉडी की सदस्य डा. मधुरा दत्ता,  शिल्प कॉन्सेप्ट के सहयोगी संस्थापक श्री राजेश जैन, शिल्प और डिजाइन विशेषज्ञ गुंजन जैन, जनजातीय शिल्पकार श्री राजेंद्र कुमार श्याम ने भाग लिया। श्री टोलिया ने कहा कि जनजातीय शिल्पकारों के लिए केवल कला का संरक्षण ही पर्याप्त नहीं बल्कि उनके हुनर को व्यापक पहचान देते हुए बाजार का सृजन अत्यंत आवश्यक है। इस दिशा में सरकार ने कई बड़े कदम उठाए हैं। 

स्टालों पर उमड़ी भीड़

देश के विभिन्न राज्यों की जनजातियों के हस्तशिल्पों के स्टालों पर देर शाम तक भीड़ लगी रही। गोंड पेंटिंग, ढोकरा मेटल क्राफ्ट, टोडा एंब्रायडरी, मोलेला टेराकोटा आर्ट, साबाई ग्रास वीविंग, लंबानी एंब्रॉयडरी और बोडो हैंडलूम आदि के स्टालों पर शॉल, स्टॉल, कंडी, पर्स, बास्केट, उल्टा दीपक, पेंटिंग्स जैसा काफी ऐसा सामान सजा था जो कभी बाजारों में नहीं मिलता। कैबिनेट मंत्री श्रीमती रेखा आर्या ने विरासत और संस्कृति से जुड़े ऐसे हर उत्पादों के बारे में जानकारी ली।

क्राफ्टकथा का आयोजन ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी के फैशन डिजाइन डिपार्टमेंट और ऑल इंडिया आर्टिशन एंड क्राफ्टवर्कर्स वेलफेयर एसोसिएशन ने संयुक्त रूप से किया। कार्यक्रम में ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी के कुलसचिव डा. डी.के. जोशी, फैशन डिजाइन डिपार्टमेंट की हेड डा. ज्योति छाबड़ा, आइका की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर मीनू चोपड़ा के साथ अमृत दास, श्रद्धा शुक्ला, अंशिता सिंह,विपुल तिवारी अन्य शिक्षक-शिक्षिकाएं और छात्र-छात्राएं मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन डा. हिमानी बिंजोला ने किया।