डॉ. मुरुगानंदम अब ICAR–CIARI पोर्ट ब्लेयर में संभालेंगे नई जिम्मेदारी

डॉ. मुरुगानंदम अब ICAR–CIARI पोर्ट ब्लेयर में संभालेंगे नई जिम्मेदारी

देहरादून। विज्ञान, समाज और सतत विकास के क्षेत्र में लगभग तीन दशकों की उल्लेखनीय सेवा के बाद ICAR–भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान (ICAR-IISWC), देहरादून के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एम. मुरुगानंदम अब नई जिम्मेदारी के साथ अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह की ओर अग्रसर हो रहे हैं। डॉ. मुरुगानंदम 31 दिसंबर 2025 को ICAR–केन्द्रीय द्वीपीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR-CIARI), पोर्ट ब्लेयर में मत्स्य विज्ञान प्रभाग के प्रमुख के रूप में कार्यभार ग्रहण करेंगे।

यह परिवर्तन केवल एक प्रशासनिक नियुक्ति नहीं, बल्कि उत्तराखंड के हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र से लेकर बंगाल की खाड़ी के संवेदनशील द्वीपीय क्षेत्रों तक विज्ञान-आधारित विकास की निरंतर यात्रा का प्रतीक है।
डॉ. मुरुगानंदम ने वर्ष 1996 में ICAR-IISWC में एक युवा वैज्ञानिक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी। लगभग 30 वर्षों के कार्यकाल में उन्होंने मत्स्यिकी, पशुपालन, जलग्रहण प्रबंधन, मृदा एवं जल संरक्षण तथा समुदाय आधारित आजीविका मॉडल के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। उन्होंने मत्स्य एवं पशुपालन आधारित दस से अधिक उत्पादन तकनीकों और आजीविका मॉडलों का विकास किया, जिनमें वर्षा आधारित तालाबों में मत्स्य पालन, एकीकृत कृषि प्रणाली, ग्रामीण कुक्कुट पालन और सामुदायिक संसाधन संरक्षण प्रमुख हैं।

उनका कार्य पारंपरिक एवं स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों के संरक्षण और वैज्ञानिक सत्यापन पर केंद्रित रहा। इसके माध्यम से उत्तराखंड सहित अन्य क्षेत्रों में दस लाख से अधिक किसानों, मछुआरों और हितधारकों तक जागरूकता पहुँची, जिससे जैव विविधता संरक्षण, नदी प्रबंधन और पारिस्थितिक संतुलन के प्रति सामूहिक समझ विकसित हुई।

वर्ष 2016 से 2018 के दौरान उन्होंने साउथ डकोटा स्टेट यूनिवर्सिटी (अमेरिका) में विज़िटिंग साइंटिस्ट के रूप में कार्य करते हुए भूमि उपयोग परिवर्तन के जल गुणवत्ता और आर्द्रभूमियों पर प्रभावों का अध्ययन किया, जिससे उनके शोध को अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण मिला।

संस्थागत स्तर पर भी डॉ. मुरुगानंदम ने वैज्ञानिक, विस्तार विशेषज्ञ, सतर्कता अधिकारी, मीडिया नोडल अधिकारी, डिजिटल आउटरीच प्रमुख तथा PME एवं ज्ञान प्रबंधन इकाई के अधिकारी-प्रभारी जैसे कई दायित्वों का सफलतापूर्वक निर्वहन किया। वे ICAR-IISWC में मत्स्यिकी और पशुपालन आधारित सूक्ष्म उद्यमों को जलग्रहण प्रबंधन से जोड़ने वाले संस्थापक वैज्ञानिकों में भी शामिल रहे।

अब ICAR-CIARI, पोर्ट ब्लेयर में वे तटीय एवं द्वीपीय कृषि प्रणालियों, समुद्री मत्स्य विकास, मीठे जल पारिस्थितिकी अध्ययन और जैव विविधता संरक्षण पर कार्य करेंगे। उनका कहना है कि यह बदलाव चुनौतियों के साथ अवसर भी लेकर आया है, लेकिन द्वीपीय समुदायों और संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्रों की सेवा का अवसर सबसे बड़ा प्रेरक तत्व रहा।

डॉ. मुरुगानंदम ने कहा, “हिमालय से बंगाल की खाड़ी तक की यह यात्रा केवल भौगोलिक बदलाव नहीं, बल्कि उद्देश्य की निरंतरता है। ICAR-IISWC और उत्तराखंड ने मुझे गढ़ा है, उसी विरासत को आगे ले जाना मेरा संकल्प है।”