- पर्यावरण संरक्षण मानव जीवन की परम आवश्यकता: निदेशक रवि जुयाल
- पर्यावरण की रक्षा से ही दुनिया की सुरक्षा संभव है: डॉ० ज्योति जुयाल
ऋषिकेश। एमआईटी ढालवाला, ऋषिकेश में एक दिवसीय पर्यावरण संरक्षण जागरूकता पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रुप में डॉ० भवतोष शर्मा, वैज्ञानिक उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं शोध केंद्र देहरादून (USERC) तथा प्रसिद्ध पर्यावरणविद् हेमन्त गुप्ता उपस्थित रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलित कर किया गया।
इस अवसर पर संस्थान निदेशक रवि जुयाल ने उपस्थित छात्र-छात्राओं और शिक्षकों को संबोधित करते हुए बताया कि जीवन और पर्यावरण
दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। दूषित पर्यावरण में स्वस्थ जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। वर्तमान समय में पर्यावरण को स्वच्छ करने की जितनी आवश्यकता है इतनी, इसे पूर्व कभी नहीं रही। उन्होंने बताया कि पर्यावरण सिर्फ कक्षाओं और पुस्तकों का विषय नहीं है बल्कि हमारे दैनिक व्यवहार का विषय है। उन्होंने कहा पर्यावरण संरक्षण हेतु यह कार्यशाला निश्चित रूप से छात्रों के जीवन में सार्थक सिद्ध होगी।
One day Workshop on Environment conservation workshop organized at MIT Rishikesh by Paryavaran Sanrakshan Gatividhi Rishikesh, Uttrakhand. pic.twitter.com/WIIspcLgFd
— Rainbow News (@RainbowNewsUk) May 15, 2022
मुख्य वक्ता डॉ० भवतोष शर्मा एवं हेमन्त गुप्ता ने तथ्यों और आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर पर्यावरण और उसके संरक्षण के संबंध में महत्वपूर्ण बिंदुओं को छात्रों के सम्मुख रखा। डॉ० भवतोष ने बताया कि पृथ्वी का 71%भाग पानी है, लेकिन उसमे से केवल 3% ही पीने योग्य है। इस पीने योग्य जल में भी जीवन 1% पीने के लिए उपलब्ध हो पाता है, क्योंकि इसका 77% ग्लेशियर के रूप में, 11% भूगर्भ में 800 फीट तक, 11% 800 से 1600 फीट गहराई तक है।
डॉ० शर्मा ने बताया कि बड़ी-बड़ी कंपनियां बोतल बंद पानी और पानी को शुद्ध करने के नाम पर भारत में प्रतिवर्ष 60 बिलियन डालर का व्यापार कर रही हैं, और पानी को शुद्ध करने के नाम पर अवश्यक खनिज तत्वों को पानी से खत्म कर दे रही है। जिससे हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता निरंतर घटती जा रही है। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड के पहाड़ी और ऊपरी मैदानी क्षेत्रों में उपलब्ध पानी को केवल उबालने से पानी को कीटाणुओं से शुद्ध किया जा सकता है, जो कि स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होगा ।
पर्यावरणविद् हेमन्त गुप्ता ने बताया कि 2018 में संसद में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष 6.2 करोड़ टन से ज्यादा कचरा निकलता है। इसका केवल 20% ही रिसाइकल के लिए छंटाई हो पाता है शेष लगभग 80% यानी लगभग 5 करोड़ टन कचरा फिर प्रतिवर्ष जमीन पर गड्ढों में फेक दिया जाता है। उन्होंने कूड़े के निस्तारण में चार आर का महत्त्व समझाया जिसमें रिफ्यूज, रिड्यूस, रीयूज और रीसाइकिल के आधार पर हम जब तक अपने घर से ही कचरे का प्रथक्करण आरंभ नही करेंगे, पॉलिथीन/प्लास्टिक के कचरे , खाद्य कचरे और अन्य बिकाऊ कचरे को कबाड़ी को देना नही आरंभ करेंगे शहरों या गांवों से कचरे में ढेर बढ़ते ही रहेंगे।
मुख्य वक्ताओं ने पर्यावरण संरक्षण के इसी प्रकार अनेक रोचक उपायों को छात्र-छात्राओं के साथ साझा किया। डॉ० ज्योति जुयाल ने कहा कि मनुष्य ही नहीं प्रत्येक जीव जंतु का प्रकृति पर समान अधिकार है। हमें उसके संरक्षण में अपना पूरा योगदान देना चाहिए। उन्होंने बाद में पछताने के बदले अभी से प्रदूषण न फैलाने तथा पर्यावरण का संरक्षण करने के लिए सभी को प्रेरित किया।
कार्यशाला में मंच का संचालन शिक्षा विभाग के प्रवक्ता राजेश चौधरी द्वारा किया गया, डॉ. वी. के. शर्मा, कौशल्या डंगवाल द्वारा उपस्थित प्रतिभागियों को धन्यवाद ज्ञापित किया गया एवं डॉ. एल एम जोशी, डॉ. प्रेम प्रकाश पुरोहित, गीता चंदोला, डॉ. रितेश जोशी, सुदीप सारस्वत,शिल्पी कुकरेजा एवं रवि कुमार का कार्यशाला में विशेष सहयोग रहा।इस अवसर पर संस्थान के सभी छात्र एवं शिक्षक, एवं पर्यावरण प्रेमी श्री भुवन फुलारा उपस्थित रहे।
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