प्रसिद्ध लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी को केदार सिंह रावत पर्यावरण पुरस्कार

प्रसिद्ध लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी को केदार सिंह रावत पर्यावरण पुरस्कार

रेनबो समाचार * 10 अप्रैल 2021

देहरादून। प्रसिद्ध लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी को लोक गीतों के माध्यम से पर्यावरण एवं वन संरक्षण के प्रति लोक चेतना विकसित करने की दिशा में अतुलनीय योगदान के लिए छठा केदार सिंह रावत पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उन्हें कैंट रोड स्थित कैंप कार्यालय में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत द्वारा दिया गया। 

मुख्यमंत्री ने कहा उन्होंने अपने गीतों में उत्तराखंड की सामाजिक, ऐतिहासिकता व पौराणिकता के साथ ही पर्यावरण संरक्षण में भी जिम्मेदारी निभाई है और इसकी अहमियत समझकर उत्तराखंड को विशेष पहचान दिलाई है। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कहा यह हम सबके लिए गर्व की बात है कि उन्हें केदार सिंह रावत पर्यावरण पुरस्कार दिया जा रहा है। साथ ही उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में पर्यावरण चेतना के प्रति लोगों में जागरूकता है, लेकिन पर्यावरण संरक्षण के लिए हमें और प्रयास करने होंगे। जल संरक्षण की दिशा में भी अनेक प्रयासों की जरूरत है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड जैव विविधताओं वाला प्रदेश है। जैव विविधता की वजह से उत्तराखंड की एक अलग पहचान है। उन्होंने बताया कि पर्यावरण संरक्षण के लिए केदार सिंह रावत, चण्डी प्रसाद भट्ट और राज्य के अनेक लोगों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

इस अवसर पर लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी ने कहा कि अपने गीतों के माध्यम से मैंने पर्यावरण चेतना से जागरूकता फैलाने का प्रयास किया। गीतों के माध्यम से उत्तराखंड की संस्कृति, लोक परम्पराओं, सामाजिकता एवं ऐतिहासिकता को उजागर करने का प्रयास किया है। साथ ही उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए समाज में जागरूकता के साथ इस दिशा में और प्रयास होने चाहिए।

इस अवसर पर ओम प्रकाश भट्ट, बी डी सिंह, गणेश खुगशाल, रमेश थपलियाल आदि उपस्थित थे।

केदार सिंह रावत पर्यावरण पुरस्कार

यह पुरस्कार चंडी प्रसाद भट्ट पर्यावरण विकास केंद्र की ओर से चिपको आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता स्व० केदार सिंह रावत की स्मृति में दिया जाता है। 2015 से यह पुरस्कार शुरू किया गया है। पुरस्कार के रूप में केंद्र की ओर से 21 हजार रुपये की नकद राशि, प्रशस्ति पत्र व अंगवस्त्र प्रदान किया जाता है। 

पहला पुरस्कार फाटा सिरसी चिपको आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अनुसूया प्रसाद भट्ट को, दूसरा पत्रकार व चिपको आंदोलनकारी रमेश पहाड़ी को तीसरा दशोली ग्राम स्वराज्य मंडल के मंत्री शिशुपाल सिंह कुंवर को तथा चौथा केदार सिंह रावत पुरस्कार उत्तराखंड में सर्वोदय आंदोलन के अग्रणी व समाज सुधारक रहे सोहन लाल भूभिक्षु को महाराष्ट्र में उनके उरूली कांचन स्थित आश्रम में दिया गया।

स्व. केदार सिंह रावत का संक्षिप्त जीवन परिचय

स्व. श्री केदार सिंह रावत जी का जन्म जिला रुद्रप्रयाग (पूर्व में चमोली) के मंदाकिनी की उपत्यका में गुप्तकाशी केदारनाथ मार्ग पर स्थित ग्राम न्यालसू-रामपुर में हुआ था। इनके पिता खेती-बाड़ी के साथ केदारनाथ यात्रा मार्ग के महत्वपूर्ण पड़ावों में से एक रामपुर पड़ाव पर दुकान का सञ्चालन कर परिवार की आजीविका चलाने के लिए कार्य करते थे। उस दौर में गुप्तकाशी से आगे केदारनाथ की पैदल यात्रा होती थी और हर पांच और सात मील की दूरी पर चट्टी होती थी। यहां तीर्थयात्री रात्रि निवास करते थे और दिन में स्वयं भोजन पकाते थे। रामपुर में भी केदारनाथ यात्रा की चट्टी थी और केदारसिंह जी के पिताजी यहीं दूकान चलाते थे।

सितम्बर साल 1961 में सर्वोदय के मीमांसक आचार्य दादा धर्माधिकारी उत्तराखंड की यात्रा पर आये थे. रामपुर में उनका रात्रि पड़ाव केदार सिंह के जीवन की दिशा बदलने वाला बना। केदारसिंह रावत उस वक्त जूनियर हाईस्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। उन्होंने दादा धर्माधिकारी जी से सहज भाव से सर्वोदय के बारे में जानने की उत्सुकता में सवाल किया कि ‘सर्वोदय क्या है?’ दादा ने उनकी कॉपी पर सर्वोदय का अर्थ लिखाया। तब से वे सर्वोदय आंदोलन से जुड़ गए। वह उत्तराखंड सर्वोदय मण्डल द्वारा आयोजित भूदान और ग्रामदान अभियान में भी सम्मिलित रहे। साथ ही वह 1966 में चंद्रापुरी शराबबंदी आंदोलन में भी सम्मिलित हुए।

वर्ष 1973 में मण्डल में वन विभाग ने पेड़ों का आवंटन साईमन कम्पनी को  किया और बड़ासू गांव की उपरी भाग में स्थित सीला के जंगल में छपान की अनुमति दे दी। इसकी जानकारी मिलते ही केदार सिंह रावत ने स्थानीय लोगों के सहयोग से 22 जून से 27 जून 1973 को सोनप्रयाग से गुप्तकाशी के बीच विशाल जन-जागरण अभियान एवं रैली का आयोजन किया। जिसके फलस्वरूप साईमन कम्पनी के ठेकेदार पेड़ों का छपान बीच में छोड़कर वापस लौट आये। 

पुनः दिसम्बर 1973 में कम्पनी के लोग पेड़ काटने के लिए जंगल पहुंचे तो केदार सिंह रावत की अगुवायी में फिर आंदोलन चला। जिसमें ठेकेदार ने चार पेड़ तो काट दिए लेकिन पांचवें पेड़ पर कुल्हाड़ा चलाने तक चिपकों के प्रदर्शनकारी जंगल में पहुंच गए और कटते पेड़ पर केदार सिंह के साथ अनुसूया प्रसाद भट्ट ने आदि ने अंगल्ठा लगा कर चिपक गए। इसके बाद ठेकेदार और वन विभाग के लोगों को जंगल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा और सीला का सम्पन्न जंगल कटने से बच गया।

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