संस्कृत दिवस इतिहास एवं महत्व विषय पर गोष्ठी का आयोजन
दिनांक 12 अगस्त 2022 को राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय नई टिहरी में मानविकी एवं समाज विज्ञान परिषद के तत्वावधान में महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य डॉ० संजीव नेगी के संरक्षण में संस्कृत दिवस इतिहास एवं महत्व विषय पर गोष्ठी का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का संचालन महाविद्यालय के एम. ए. द्वितीय सेमेस्टर के छात्र सुरेश रतूड़ी द्वारा वैदिक मंत्रों के उच्चारण से किया गया।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में महाविद्यालय की संस्कृत विभाग की प्रभारी एवं मानविकी एवं समाज विज्ञान परिषद की अकादमिक प्रमुख डॉ. इन्दिरा जुगरान द्वारा संस्कृत दिवस इतिहास एवं महत्व विषय पर व्याख्यान दिया गया।
सर्वप्रथम वक्तव्य में डॉ. इन्दिरा जुगरान ने सभी को विश्व संस्कृत दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि भारत वर्ष की दो प्रतिष्ठा है – संस्कृत एवं संस्कृति। उन्होंने बताया कि संस्कृत दिवस हर वर्ष श्रावणी पूर्णिमा को मनाया जाता है। जैसा कि हम जानते हैं श्रावणी पूर्णिमा का हमारी संस्कृति में बहुत महत्व है। हमारे देश में जन्में ऋषियों ने हमें विवेक और ज्ञान का उपहार दिया है। उनके योगदान पर प्रकाश डालने और उन्हें नमन करने के लिए श्रावणी पूर्णिमा को संस्कृत दिवस या ऋषि पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को विश्व की प्राचीनतम भाषाओं में से एक संस्कृत भाषा को समर्पित किया गया है। संस्कृत भाषा अपने माहात्म्य के कारण देव भाषा भी कही गई है। भारतवर्ष की भूमि पर इसका सम्मान चिरकाल से होता आया है।
संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। इस भाषा को देववाणी के समान प्रतिष्ठित माना गया है। कर्णप्रिय ध्वनि तथा वैभवशाली शब्दों का समागम संस्कृत भाषा को भारत में ही नहीं, अपितु विश्व भर में इसे आदरणीय बनाता है।
सन 1969 को पहली बार इस दिन को व्यवहार में लाया गया था। भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने केंद्रीय तथा राजकीय स्तर पर इसे मनाने के निर्देश जारी किए थे। ये संस्कृत जैसी समृद्ध भाषा के संरक्षण की ओर एक महत्वपूर्ण कदम था। प्राचीन भारतीय साहित्य संस्कृत की कर्मभूमि के समान है। गौर करें तो संस्कृत को भारतीय उपमहाद्वीप की शास्त्रीय भाषा होने का गौरव भी प्राप्त है। इस भाषा का प्रादुर्भव पांच हजार वर्षों से भी पहले हुआ था। इसे देववाणी अथवा सुरभारती जैसा संबोधन भी मिला।
वेदों के अलावा प्रमुख साहित्यों को देखा जाए तो पतंजलि, पाणिनी आदि की रचनाओं ने संस्कृत की स्थिति सुदृढ़ की है। पतंजलि रचित योगसूत्र में छह प्रकार के दर्शनों का वर्णन है, जो संस्कृत में रचित हैं। उसी प्रकार पाणिनी ने अष्टाध्यायी की रचना की जो लगभग चार हजार सूत्रों से बना है। इसे संस्कृत भाषा से जुड़ा व्याकरण का एक व्यापक विवरण माना गया है।
देवीमाहात्म्य ग्रंथ में सुरक्षित पांडुलिपि को संस्कृत भाषा से जुड़ी सबसे प्राचीन पांडुलिपि माना गया है। ऋग वैदिक काल से ले कर वर्तमान स्थिति की बात करें तो पूजा, धर्म से जुड़े कार्यों के अलावा दार्शनिक, वैज्ञानिक और मानविकी क्षेत्र में भी संस्कृत एक प्रभावशाली भाषा रही है।
नासा द्वारा स्प्ष्ट किया कि संस्कृत कंप्यूटर प्रोग्रामिंग की लिए उपयुक्त एवं स्प्ष्ट भाषा है, AIIMS के द्वारा ऋग- वैदिक मंत्रों को सत्यापित भी किया गया है, अमेरिका के वैज्ञानिक डॉ. हावर्ड ने बताया कि ऋग वैदिक मंत्रों के द्वारा मनुष्य की जीवन रक्षक थेरेपी की जा सकती है। इसकी प्रमाणिकता इसी में है कि आज विश्व में संस्कृत योग दर्शन के साथ मानव जाति को जीवन जीने का तरीका बता रही है ।
डॉ. जुगरान ने कहा कि संस्कृत भाषा वाक्य विन्यास एवं सूत्र- शैली से निबद्ध होने के कारण अंतरिक्ष में संदेश भेजने के लिए सबसे उपयुक्त है। वसुधैव कुटुम्बकम् , सत्यमेव जयते, सर्वे भवन्तु सुखिनः जैसे वैदिक वाक्याश संस्कृत में ही मिकते हैं।
कार्यक्रम में डॉ. मणिकांत शाह, डॉ. विजय सेमवाल डॉ.भारती जयसवाल, ने भी संस्कृत दिवस पर अपने विचार प्रस्तुत किये।
इसी क्रम में डॉ. इन्दिरा जुगरान ने प्रभारी प्राचार्य, प्राध्यापको, छात्र- छात्राओं एवं कर्मचारियों का भी धन्यवाद दिया।
प्रभारी प्राचार्य डॉ. संजीब नेगी ने सभी को विश्व संस्कृत दिवस की बधाई दी तथा संस्कृत दिवस से सम्बंधित जानकारी साझा की और डॉ. इंदिरा जुगरान सहित परिषद के सभी सदस्यों को शुभकामनाएं भी दी गई।
कार्यक्रम का समापन सुरेश रतूड़ी द्वारा धन्यवाद ज्ञापित कर किया गया।
इस अवसर पर डॉ. संजीब नेगी, डॉ. मणिकांत शाह, डॉ. श्रद्धा सिंह, डॉ. पदमा वशिष्ठ, डॉ. हर्ष सिंह नेगी, डॉ. प्रीतम, डॉ. मीरा कुमारी, डॉ. भारती जयसवाल, डॉ. सोबन सिंह, डॉ. विजय सेमवाल, वैभव रावत, के. के. बंगवाल, डॉ. गुरुपद गुसाईं, डॉ. पूजा भंडारी, डॉ. निशांत भट्ट, डॉ. सुभाष नौटियाल, डॉ. सजवाण, डॉ. संदीप बहुगुणा, डॉ. नवीन रावत, डॉ. सुमन गुसाईं, डॉ. अशोक जोशी, डॉ. कमलेश पाण्डे शिक्षक एवं शिवांशी, सुरेश रतूड़ी आदि छात्र- छात्राएं उपस्थित रहे।
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