- इस लेख में डॉ विक्रम फूकुन, भौतिकी विभाग, अशोका विश्विद्यालय के अंग्रजी लेख का अनुवाद भी सामिल हैl
“गुरु मध्ये स्थितम विश्वं ,विश्वमध्ये स्थितो गुरु ।
गुरूर विश्वं नमस्तेस्तु तस्मै श्री गुरुवे नमः ।।”
अर्थात: गुरु के बीच में जग स्थित है और संसार मध्य में गुरु स्थित है, गुरु के पार जग कहाँ ?
यह एक वैदिक कालीन सूक्ति है जिसमे गुरु या शिक्षक को इस संसार की सभी गतिविधियों के मूल में रखने का प्रयास करती है। क्या इस आधुनिक काल में भी गुरु के पद की उतनी ही प्रासंगिकता कायम है?
एक बार की बात है कि एक व्यक्ति हार्वर्ड विश्वविद्यालय में महान भौतिक विज्ञानी जूलियन श्विंगर से मिलने के लिए आया, वह व्यक्ति उनके व्याख्यान कक्ष आ पहुंचा जहां वे अक्सर निर्धारित समय पर व्याख्यान देने के लिए आते थे, परंतु आज स्विंगर उस कक्ष में नहीं पहुंचे थे, तो उस व्याक्ति ने एक कार्यालय सहायक से बड़ी उत्सुकता से पूछा कि महान भौतिक शास्त्री श्रीमान जूलियनश्विंगर किस द्वार से कक्ष में प्रवेश करेंगे। सहायक ने बिना देरी किए हुए कमरे की छत की ओर इशारा करते हुए जवाब दिया, “वह यहाँ से प्रवेश करेंगे” । कार्यालय सहायक के इस जवाब से वह व्यक्ति बड़ा अचंभित हुआ। वास्तव में श्विंगर -20 वीं शताब्दी के महान भौतिकविदों एवम विश्व प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी रिचर्ड फेनमैन के समकालीन होने के साथ साथ वे एक महान व्याख्याता भी थे और वे जहां छात्रों के बीच खड़े होते थे वहीं एक बहुआयामी शिक्षा कक्ष का निर्माण हो जाता था और उनके धाराप्रवाह व्याख्यान एवम बड़ी बेबाकी से विज्ञान के तथ्यों पर चर्चा करने के गुण से हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता था। शिक्षक का बेहतरीन शिक्षण कौशल और छात्र का प्रतिभाग एक आदर्श शिक्षार्थी के के रूप में होने से ही एक आदर्श शैक्षिक वातावरण की शुरुआत होती है।
शिक्षण में कहानी कहने का एक मजबूत तत्व होता है, और एक कहानीकार के सबसे महत्वपूर्ण गुणों में से एक यह है कि वह अपनी कहानी को इतना प्रभावी एवम रोमांचित तथ्यों से परिपूर्ण करे कि जिससे जटिल से जटिल पाठ को समझने की लिए छात्रों का ध्यान आकर्षित कर सके एवम साथ ही साथ वह शिक्षण के दौरान छात्रों की भागीदारी भी सुनिश्चित करने में सहायक सिद्ध हो सके। इस तरह की नियमित प्रक्रिया से छात्रों एवम शिक्षक संबंधों में एक उन्नयंता बनी रहेगी,
जैसा कि सभी जानते हैं कि शिक्षण एवम अध्ययन में कई विभिन्न तरीकों का प्रचलन है,एक प्राचीन परंपरा जो शिक्षण में काफी प्रचलित है, वह है ग्रीक दार्शनिक सुकरात की हालांकि यह सभी तर्कपूर्ण संस्कृतियों में भी मौजूद है, हमारी संस्कृति के अनुसार सुकराती परंपरा में शिक्षक का कार्य छात्रों को सिर्फ लुभाना एवम विषय पढ़ना नहीं है, बल्कि उन्हें जागृत करना है, उन्हें प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित करना है।
शिक्षा की इस परंपरा में भी शिक्षक ही नेतृत्व करता है और वह हमेशा प्रश्न पूछने के वातावरण तैयार करने के साथ साथ कक्षा में शैक्षिक एवम अध्यन की निरंतर क्रियाशीलता को भी उद्विपित करता है। इस प्रक्रिया में शिक्षक छात्रों के स्तर तक जाकर शिक्षण की प्रवृत्ति को रखता है।
निरंतर आधुनिक कोशलों के विकास क्रम में मुद्रित पुस्तकों के आविष्कार ने शिक्षा जगत को एक नव शिक्षण का आयाम दिया है जिसमे पुस्तक को ही गुरु की उपाधि से नवाजा गया है, पुस्तक भी एक ऐसे शिक्षक के रूप को दर्शाती है जो एक बड़ी हद तक आभा से मुक्त है, निश्चित रूप से कम संवादात्मक होने के साथ ही साथ कम आग्रहपूर्ण एवम अनंत धैर्य वाला हैं। शिक्षा में किताबों से सिखाने और सीखने का एक क्रांतिकारी तरीका है, किताबी शिक्षण के इस तरीके में यदि वास्तविक शिक्षक का भी प्रतिभाग होता है तो शिक्षण एवम अध्यन के अनेक उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है, क्योंकि अधिकांश छात्रों को पुस्तकों में भरे ज्ञान को भी समझने के लिए,एक वास्तविक शिक्षक की आवश्यकता हमेशा महसूस होती रहेगी। सामान्य तौर पर हम देखते हैं कि छात्रों का समूह में सीखना आमतौर पर अकेले सीखने की तुलना में अधिक प्रभावी होता है। इसका एक कारण यह है कि मनुष्य अपनी गलतियों का पता लगाने या सुधारने में बहुत प्रवीण नहीं होता है, लेकिन दूसरों की गलतियों को सुधारने में बड़ी उत्सुकता रखता है, और साथ ही साथ जब हम एक साथ होते हैं तो हमारी सामूहिक उपस्थिति व्यक्तिगत उपस्थितियों के मेल से अधिक होती है। सामूहिक तौर से अध्ययन छात्रों की व्याकुलता एवम उनके भय को भी कम करती है एवम उनकी एकाग्रता को भी बढ़ाने में सहायक होती है; इसका उदाहरण हम अपने दैनिक जीवन शैली में भी देख सकते है जैसे खेल स्टेडियम, थिएटर आदि ऐसे सामूहिक स्थल है जहां हम सब लोग एक प्रमुख उद्देश्य के लिए सामूहिक तौर पर उपस्थित होते हैं और एक दूसरे से सिखतें भी हैं और ऐसे वातावरण में प्रत्येक प्रतिभागी गुरु एवम शिस्य की भूमिका का निर्वहन करता है। कुछ वर्ष पूर्व और अगर कहें तो ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के आगमन से पहले ऑनलाइन या आभासी कक्षा का स्वरूप प्रमुख तीन तरीकों से प्रभावित थी: पहले एक कहानी के तौर पर जो आमतौर पर एक या अधिक पुस्तकों से तैयार की गई हो और दूसरा उस कहानी को सुनाना एवम तीसरे चरण में उसे सुनकर शिक्षण-अध्यन का वातावरण त्यार करना है,और इन सभी चरणों में एक शिक्षक द्वारा नेतृत्व करना इन सभी के मध्य समन्वय प्रदान करना है।उपर्युक्त तत्वों का सापेक्षिक महत्व एक शैक्षिक पर्यावरण पर निर्भर करता है, जो बदले में सामाजिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है। वर्तमान समय की मांग एवम हम कह सकते हैं कि कोविड 19 वैश्विक महामारी के फल स्वरूप, हमारे सामने शिक्षण एवम अध्ययन के क्षेत्र में कई अभूतपूर्व परिवर्तन देखने को मिले हैं जैसे ऑनलाइन शिक्षण पोर्टलों का आगमन,और प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों के वास्तविक व्याख्यान के वीडियो, उदाहरण के तौर पर MIT एवम IIT के OCW (ओपन कोर्स वेयर) के माध्यम से इन प्रतिष्ठित संस्थाओं के अध्यापकों से सीखने के लिए सभी श्रेणियों के शिक्षणार्थियों को एक सुनहरा मौका प्रदान कर दिया है। इसी क्रम में खान अकादमी, बायजू और 3ब्लू1ब्राउन जैसे ऑनलाइन शिक्षण पोर्टलों के आगमन से शिक्षण का एक नया स्वरूप देखने को मिल रहा है, इन सभी माध्यमों से एक शिक्षक जो एनिमेशन के माध्यम से एक आभासी कक्षा का निर्माण करता है और अपने पाठ्यक्रम को बहुत प्रभावी एवम छात्र केंद्रित हो कर बड़े रुचिकर तरीके से शिक्षण करता है। इस तरह के शिक्षण में एक आत्मीय संवेदना को जोड़ने का प्रयास तो किया जाता है परंतु फिर भी उसकी कमी बनी नजर आती है और शिक्षक एवम छात्र के मध्य हमेशा ही एक दूरी बनी रहती है। परंतु वर्तमान परिदृश्य में हमे यह देखने को मिलता है कि हमारे बहुत सारे युवा केवल किताब एवम ऑनलाइन पाठ्यक्रम के माध्यम से सीखने में काफी सहज हो गए हैं। और छात्र अपने अध्यापकों से यह कहते हुए सुने जाते हैं कि “सर, सभी अच्छी चीजें वेब पर उपलब्ध हैं, हम कॉलेज में सिर्फ मेलजोल एवम दोस्ती करने आते हैं।” यह सुनकर एक आदर्श शिक्षक वास्तव में अचंभित हो सकता है, लेकिन आज हम सब को यह स्वीकार करना पड़ेगा कि सीखने की यह ऑनलाइन अवधारणा एक दिन अपना आदर्श रूप ले सकती है। वर्तमान समय को देखते हुए प्रत्येक शिक्षक को एक प्रश्न हमेसा प्रभावित करेगा, क्या कक्षा को एक शिक्षक की आवश्यकता है? इस प्रश्न ने मेरी कल्पनाओं को नए पंख दे दिए हैं जिसमें मैंने भविष्य की कक्षा को एक ऐसे स्थान के रूप में देख रहा हूं जिसमें छात्र अपनी गति से और अपने तरीके से, ऑनलाइन प्रशिक्षकों और डिजिटल गुरुओं दोनों से सीखने के लिए एकत्रित हो रहे हैi परंतु फिर भी मैंने महसूस किया है कि छात्रों को अभी भी एक साथ रहने की आवश्यकता होगी, न केवल सामाजिककरण के लिए, बल्कि इसलिए भी क्योंकि, जब छात्र एक साथ कक्षा में आए तो शिक्षण एवम अध्ययन में बिखराव की स्थिति से बचा जा सकता है। कॉविड 19 लॉकडॉन के दौरान जो ऑनलाइन शिक्षण हुआ, उसमे छात्रों की कक्षा मे एक तरह से आभासी उपस्थिति थी,परंतु ऑनलाइन प्रकार भी भयावह समय की एक प्रमुख मांग थी। परंतु ऑनलाइन तरीके से शिक्षण में शिक्षक को छात्रों का ध्यान आकर्षित करना मुश्किल होता है। छात्रों को एक अच्छी कक्षा में विकसित होने वाली सामूहिक उपस्थिति के अभाव में उनका ध्यान केंद्रित करना और रुचि बनाए रखना एक शिक्षक के लिए काफी मुश्किल कार्य है। और शिक्षण अगर सिर्फ आभासी तौर पर कहानी के माध्यम से हो तो यह सबसे अच्छा तब काम करता है जब लाइव दर्शक हों, और सवाल करना, और चर्चा सबसे स्वाभाविक रूप से तब होती है जब लोग एक-दूसरे से वास्तविक तौर पर मिल सकें । इस प्रकार से ऑनलाइन शिक्षण क्रम ने एक कक्षा के दो (सवाल एवम चर्चा) आवश्यक तत्वों को पूरी तरह से खत्म कर दिया था। दूसरी तरफ यह भी सच है कि इस मध्यम ने कक्षा में अपरिहार्य कुछ विकर्षणों को भी दूर कर दिया था। लेकिन कुल मिलाकर, जूमिंग और गूगल-मीटिंग एक कक्षा द्वारा अनुमत वास्तविक कक्षाओं से बहुत अलग थे। शिक्षक और छात्रों के बीच बातचीत इस ऑनलाइन माध्यम से भी संभव है, परंतु उनका स्वभाव बिल्कुल बदल गया है। , इसने छात्रों एवम शिक्षकों के बीच होने वाली चर्चा को भी समाप्त कर दिया है, जिससे सीखने की प्रक्रिया का एक प्रभावी हिस्सा अपनी लुप्त अवस्था में आगया है। एक वास्तविक कक्षा में एक छात्र के चेहरे पर भावों से उसके अंदर चलने वाले द्वंद एवम प्रश्नों को जाना जा सकता है, दूसरे शब्दों में, शरीर की भाषा के माध्यम से संचार जो मानव संपर्क का हिस्सा है, उसे पूर्ण रूप से समझा जाता है, जिसे ऑनलाइन शिक्षण ने पूरी तरह से समाप्त कर दिया है। शिक्षण में हुए इस तरह के बदलाव को भी भविष्य के एक सकारात्मक परिवर्तन के रूप में ही हम सब लोगो को देखना चाहिए और जहां तक हम सब का अनुभव रहा है। मनुष्य के पास नई परिस्थितियों के अनुकूल होने की असाधारण क्षमता है, खासकर यदि वे ऐसी सुविधाएं और संभावनाएं प्रदान करते हैं जो पहले की परिस्थितियों में नहीं थीं, तो यह बहुत संभव है, कि ऑनलाइन और ऑफलाइन शिक्षण का किसी प्रकार का मिश्रण जल्द ही अपनी आदर्श एवम अधिक मंगलकारी परिणामों के स्वरूप में आएगा। कॉविड 19 ने हमें चीजों को अलग तरह से करने के लिए मजबूर किया है, और हम अपने द्वारा किए गए कुछ नए कामों को और प्रभावी ढंग से एक नए नवाचार के रूप में छात्रों के मध्य रख सकते हैं। इस तरह के बदलाव की बात मानव जाति के इतिहास में कई बार हुई है, उदाहरण के तौर पे देखें तो जब संगीत लाइव रिकॉर्ड हो गया, जब थिएटर सिनेमा बन गया, जब फिल्में स्ट्रीमिंग हो गईं, जब किताबें डाउनलोड हो गईं, जब किताबों की दुकानें अमेज़ॅन बन गईं, जब पत्र ई-मेल बन गए, जब टेलीफोन वार्तालाप संदेश बन गए। प्रत्येक पुराने अनुभव में एक नया नवाचार समलित होकर पुरानी अवधारणा को एक नया आयाम प्रदान करता है जो पुराने से भी कई गुना ज्यादा प्रभावशाली होता है। जो लोग पुराने से नए में रूपांतरित होने के संक्रमण काल से गुजरते हैं, वे आमतौर पर नए में गैर-स्पष्ट की अनुपस्थिति को महसूस करते हैं, कभी-कभी यह जाने बिना कि वे क्या खो रहे हैं, कभी-कभी स्वीकृति और खेद के साथ, कभी-कभी इनकार के साथ, और कभी-कभी कृतज्ञता के साथ। जो लोग नए दौर में पैदा हुए हैं वे निश्चित रूप से कभी नहीं जान सकते कि पुराने की संपूर्णता क्या थी। इसी तरह यदि भौतिक तौर पर कक्षाओं का स्थान समाप्त हो गया तो शिक्षण एवम अध्ययन में समाहित बहुत कुछ अनमोल तत्वों का समाप्त होना भी निश्चित है। परंतु फिर भी गुरु एवम शिष्य के बीच की पूर्णता हमेशा अक्षुणता पूर्वक रहेगी।
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