देहरादून: उत्तराखंड के अंतरिम पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) अभिनव कुमार ने राज्य में डीजीपी नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता और स्वायत्तता सुनिश्चित करने की मांग की है। उन्होंने प्रदेश पुलिस अधिनियम 2007 के प्रावधानों का हवाला देते हुए राज्य सरकार से उत्तर प्रदेश की तरह एक स्वतंत्र और पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया अपनाने का अनुरोध किया है।
गृह सचिव शैलेश बगौली को भेजे गए पत्र में अभिनव कुमार ने मौजूदा प्रक्रिया को ‘संवैधानिक और व्यवहारिक दृष्टि से अनुचित’ बताया। वर्तमान में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) और गृह मंत्रालय की निर्णायक भूमिका होती है, जिसे कुमार ने राज्य सरकार की स्वायत्तता के लिए बाधा बताया।
पुलिस अधिनियम 2007 का हवाला
कुमार ने पुलिस अधिनियम 2007 का उल्लेख करते हुए कहा कि इस कानून के तहत राज्य सरकार को डीजीपी पद के लिए एक स्क्रीनिंग समिति का गठन करना चाहिए। यह समिति योग्य अधिकारियों का एक पैनल तैयार करेगी, जिसमें पुलिस महानिदेशक स्तर के स्वीकृत पदों की संख्या के तीन गुने से अधिक अधिकारी शामिल नहीं होंगे।
उत्तर प्रदेश की प्रक्रिया को अपनाने का सुझाव
कुमार ने उत्तर प्रदेश का उदाहरण देते हुए कहा कि उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के तहत वहां नई प्रक्रिया लागू की गई है। इसमें राज्य सरकार की निर्णायक भूमिका बनी रहती है, जो संवैधानिक व्यवस्था और अदालत के निर्देशों के अनुरूप है। उन्होंने उत्तराखंड में भी ऐसी प्रक्रिया लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया।
राज्य सरकार से अपील
कुमार ने कहा, “पुलिस व्यवस्था संविधान की अनुसूची सात के तहत राज्य का विषय है। ऐसे में यह महत्वपूर्ण है कि राज्य सरकार डीजीपी की नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता और स्वायत्तता सुनिश्चित करे।”
गौरतलब है कि कुमार की अंतरिम डीजीपी के रूप में नियुक्ति 30 नवंबर 2023 को की गई थी। उनके इस पत्र ने राज्य की पुलिस व्यवस्था में सुधार और डीजीपी की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है।