धरती माँ कराह रही है। उसके जंगलों की हरियाली सूखती जा रही है, नदियाँ अपना मार्ग छोड़ रही हैं, और आकाश की छाया अब धूप की तपिश में बदलती जा रही है। यह कोई कवि की कल्पना नहीं, बल्कि हमारे समय की कठोर और कटु सच्चाई है। इंसान ने प्रकृति को जितना दोहन किया है, वह अब उसे प्रतिफल के रूप में जलवायु परिवर्तन, सूखा, बाढ़, भूस्खलन, और असहनीय तापमान के रूप में वापस मिल रहा है।
हर वर्ष 5 जून को जब विश्व पर्यावरण दिवस आता है, तो जैसे पूरी दुनिया एक दिन के लिए ‘हरियाली’ की ओर देखती है। नारे लगते हैं, पौधे लगाए जाते हैं, फोटो खींचते हैं, और फिर सालभर वही उपेक्षा, वही दोहन जारी रहता है। लेकिन अब समय आ गया है कि हम इसे एक प्रतीकात्मक दिवस न मानकर जन-चेतना का स्थायी उत्सव बनाएं और इसकी शुरुआत हम एक छोटे लेकिन बेहद प्रभावशाली कदम से कर सकते हैं — “वन प्लांट एवरीवन- One Plant Everyone”, यानी हर व्यक्ति एक पौधा।
यह न केवल एक पर्यावरणीय कदम है, बल्कि एक भावनात्मक, सामाजिक और नैतिक संकल्प भी है। यदि हर व्यक्ति वर्ष में कम से कम एक पौधा लगाए और उसकी देखभाल करें, तो यह धरती पुनः हरियाली से भर सकती है।

वृक्षारोपण: प्रकृति से किया गया प्रेम का इज़हार
प्रकृति हमें जन्म से मृत्यु तक संजोती है — हवा, पानी, भोजन, औषधियाँ, ईंधन, और न जाने क्या-क्या। इन सबका मूल स्रोत पेड़-पौधे हैं। वृक्ष केवल ऑक्सीजन के उत्पादक नहीं, बल्कि पृथ्वी के पर्यावरणीय संतुलन के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ हैं।
एक अकेला पेड़:
- पूरे जीवनकाल में लगभग 1 टन कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करता है।
- प्रतिदिन 20 से 30 लोगों के लिए ऑक्सीजन प्रदान करता है।
- मिट्टी को बाँध कर रखता है, जिससे भू-क्षरण नहीं होता।
- पक्षियों, कीटों, और अन्य जीवों के लिए आवास देता है।
हम जिन शहरों में रहते हैं, वहाँ की धूल, धुँआ और गर्मी हमें रोज़ बीमार करती है। यदि शहरों के हर मार्ग, हर छत, हर स्कूल, हर मोहल्ले में पेड़ हों, तो यह समस्याएँ बहुत हद तक समाप्त हो सकती हैं।

वनीकरण: उजड़ी धरती का पुनर्जन्म
भारत में पिछले कई दशकों में जंगलों की अंधाधुंध कटाई हुई है। खेती, सड़क, औद्योगिक परियोजनाएँ, आवासीय कॉलोनियां — सबने जंगलों को निगल लिया है। इसका असर हम अपनी आँखों से देख सकते हैं – वर्षा का घटता स्तर, झीलों का सूखना, वनों में आग की बढ़ती घटनाएँ, और स्थानीय तापमान में अस्वाभाविक वृद्धि।
ऐसे में वनीकरण, यानी वन क्षेत्रों का पुनर्निर्माण, अब विलासिता नहीं बल्कि आवश्यकता बन चुका है। केवल पहाड़ी क्षेत्रों में ही नहीं, बल्कि हर राज्य, हर जिले में ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ बंजर ज़मीन पर वनीकरण कर जैवविविधता को पुनर्जीवित किया जा सकता है।
वन केवल वन विभाग की जिम्मेदारी नहीं हैं। यदि स्थानीय समुदायों को शामिल किया जाए, यदि गाँवों के लोग, स्कूलों के विद्यार्थी, और शहरों के नागरिक मिलकर वनों की रक्षा करें, तो यह आंदोलन सफल हो सकता है।
“वन प्लांट एवरीवन”: एक विचार से जनांदोलन तक
“वन प्लांट एवरीवन” का विचार बेहद सरल है – हर व्यक्ति वर्ष में कम से कम एक पौधा लगाए और उसकी देखरेख करे। यह विचार छोटा अवश्य लगता है, परंतु इसके प्रभाव दूरगामी और व्यापक हैं।
कल्पना कीजिए — भारत की आबादी लगभग 140 करोड़ है। यदि इनमें से केवल 10% लोग भी हर वर्ष एक पौधा लगाएं और उसका संरक्षण करें, तो हर साल 14 करोड़ नए वृक्ष धरती को मिलेंगे। और यदि यह संख्या 50% तक पहुँच जाए तो? धरती फिर से हरी हो सकती है।

इस अभियान के कई लाभ हैं:
- यह समाज को व्यक्तिगत जिम्मेदारी का बोध कराता है।
- इसमें कोई बड़ी पूंजी या तकनीक नहीं लगती – बस एक भावना और संकल्प चाहिए।
- यह बच्चों में प्रकृति प्रेम को जन्म देता है।
- इससे सामुदायिक भागीदारी बढ़ती है – स्कूल, कॉलेज, मोहल्ला समिति सब जुड़ सकते हैं।
वृक्षारोपण और समाज: सांस्कृतिक और भावनात्मक जुड़ाव
भारतीय संस्कृति में वृक्षों को देवता का स्थान दिया गया है — पीपल, वट वृक्ष, नीम, तुलसी, आम, अशोक, हरसिंगार जैसे वृक्षों की पूजा की जाती है। यह केवल धार्मिकता नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति आदर का प्रतीक है।
आज जब हमारे बच्चे मोबाइल और इंटरनेट की दुनिया में खो गए हैं, उन्हें मिट्टी, पौधे और प्रकृति से जोड़ना अत्यंत आवश्यक हो गया है। यदि वे एक पौधा लगाते हैं और उसे बड़ा होते हुए देखते हैं, तो उनमें संवेदनशीलता और जिम्मेदारी का भाव भी विकसित होता है।
हरित भारत: स्कूलों, संस्थानों और उद्योगों की भूमिका
- विद्यालय: हर विद्यालय को ‘ग्रीन स्कूल’ बनाने की दिशा में काम करना चाहिए। प्रार्थना सभा में पर्यावरण की बात है, हर बच्चे को ‘मेरा पौधा’ नामक प्रोजेक्ट दिया जाए, जहां वह एक पौधा लगाकर उसकी प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करें।
- कॉलेज और विश्वविद्यालय: NSS, NCC, और पर्यावरण क्लब के माध्यम से वृक्षारोपण को नियमित गतिविधि बनाया जाए। पर्यावरण शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।
- उद्योग: CSR (कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी) के तहत बड़ी कंपनियां वृक्षारोपण को प्राथमिकता दें। उनके परिसर और आसपास के क्षेत्र को हरित बनाना उनकी सामाजिक जवाबदेही होनी चाहिए।
विकास बनाम पर्यावरण: संतुलन की तलाश
आज हम जिन विकास परियोजनाओं की बात करते हैं – एक्सप्रेसवे, टाउनशिप, स्मार्ट सिटी – उनमें हरियाली अक्सर आखिरी प्राथमिकता होती है। लेकिन सच्चा ‘स्मार्ट’ वही है जो पर्यावरण के साथ संतुलन बनाए।
हर परियोजना के साथ वनीकरण अनिवार्य होना चाहिए। जितने पेड़ कटें, उनसे दोगुना लगाए जाएँ। ईंट और कंक्रीट के साथ-साथ मिट्टी और हरियाली की भी जगह हो।
जन-जागरूकता: मीडिया की भूमिका
मीडिया, खासकर प्रिंट और डिजिटल समाचार माध्यमों को वृक्षारोपण अभियानों को बढ़ावा देना चाहिए। वृक्ष मित्रों की कहानियाँ, ग्रामीण महिलाओं के द्वारा किए गए संरक्षण कार्य, स्कूली बच्चों के ग्रीन प्रोजेक्ट्स – ये सब समाज को प्रेरित कर सकते हैं।
“वन प्लांट एवरीवन” जैसी मुहिम को अगर समाचार पत्र अपने हर पन्ने पर स्थान दें, तो यह हर पाठक के मन में बीज की तरह अंकुरित होगा।
उपसंहार: धरती को लौटाएं उसका हरापन
प्रकृति कोई बाहरी तत्व नहीं, हम सब उसी का अंश हैं। अगर आज हम पेड़ लगाते हैं, तो यह न केवल प्रकृति का उपकार है, बल्कि स्वयं अपने भविष्य की रक्षा है।
इस विश्व पर्यावरण दिवस पर हम केवल एक पौधा न लगाएं, बल्कि एक वचन भी दें — कि हम उसे बड़ा करेंगे, उसकी रक्षा करेंगे, और अपने मित्रों, परिवार, विद्यार्थियों, सहयोगियों को भी इसके लिए प्रेरित करेंगे।
“वन प्लांट एवरीवन” कोई नारा नहीं, बल्कि यह इस सदी की सबसे आवश्यक नागरिक पहल है। यदि हम सब इसमें भाग लें, तो यह आंदोलन इतिहास में एक परिवर्तनकारी मोड़ बन सकता है।
ग्राफिक एरा (डीम्ड टू बी) यूनिवर्सिटी के यांत्रिकी अभियांत्रिकी विभाग, सेंटर ऑफ इंडियन नॉलेज सिस्टम तथा सभी बीटेक प्रथम वर्ष के छात्र-छात्राओं ने एक वृक्ष एक व्यक्ति का उदाहरण पेश करते हुए विश्व पर्यावरण दिवस पर लगभग 300 पेड़ लगाकर सभी को प्रोत्साहित किया। आप सभी से यही अनुरोध है कि आप भी एक वृक्ष अवश्य लगावे तथा अपने आसपास के सभी लोगों को प्रेरित करें जिससे कि आने वाला कल अत्यधिक सुंदर एवं खुशनुमा होगा।
आइए, आज से ही शुरुआत करें – एक पौधा, एक जीवन, एक संकल्प।
धरती मुस्कुराएगी, और हमें आशीर्वाद देगी – हर साँस में, हर छाँव में।
-डॉ. गगन बंसल
(सहायक प्रोफेसर, ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय, देहरादून)
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