आईसीएआर–आईआईएसडब्ल्यूसी ने जनजातीय गौरव पखवाड़े के तहत प्रदर्शित की जनजातीय संस्कृति और सतत जीवन शैली

आईसीएआर–आईआईएसडब्ल्यूसी ने जनजातीय गौरव पखवाड़े के तहत प्रदर्शित की जनजातीय संस्कृति और सतत जीवन शैली

देहरादून। भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के अवसर पर “जनजातीय गौरव पखवाड़ा” के अंतर्गत आईसीएआर–भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान (आईआईएसडब्ल्यूसी), देहरादून ने 6 नवंबर 2025 को डॉल्फिन (पीजी) संस्थान, देहरादून में “जनजातीय संस्कृति एवं विरासत संरक्षण” विषय पर एक विशेष जन-जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया।

कार्यक्रम का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण, पारंपरिक ज्ञान प्रणाली और सतत जीवन शैली के बीच गहरे संबंध को रेखांकित करना था।

जनजातीय संस्कृति: स्थायित्व और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक

कार्यक्रम में आईसीएआर–आईआईएसडब्ल्यूसी के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रभारी (पीएमई एवं केएम इकाई) डॉ. एम. मुरुगानंदम ने गढ़वाल क्षेत्र की जनजातीय संस्कृति, परंपराओं और समृद्ध लोक विरासत का विस्तृत प्रदर्शन किया।
उन्होंने बताया कि गढ़वाली नृत्य, लोकगीत, लोककथाएँ और पारंपरिक त्योहार न केवल सामाजिक एकता का प्रतीक हैं, बल्कि वे प्रकृति संरक्षण और जैव विविधता संवर्धन का संदेश भी देते हैं।

डॉ. मुरुगानंदम ने कहा कि “जनजातीय गौरव पखवाड़ा केवल भारत के जनजातीय नायकों को श्रद्धांजलि देने का अवसर नहीं, बल्कि यह पारंपरिक ज्ञान और सतत जीवन शैली का उत्सव है, जिसने सदियों से हमारे पारितंत्र की रक्षा की है।
उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि जनजातीय समाज के सिद्धांत — सम्मान, संयम और पुनरुद्धार — ही आधुनिक स्थायित्व और पर्यावरणीय संतुलन की नींव हैं।

जनजातीय ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का समन्वय

डॉ. मुरुगानंदम ने जनजातीय जीवनशैली और आधुनिक पर्यावरणीय अवधारणाओं के बीच समानता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि पारंपरिक जल संचयन, पवित्र उपवन, वन पंचायतें और मधुमक्खी पालन जैसी परंपराएँ पर्यावरणीय स्थायित्व की उत्कृष्ट मिसाल हैं।
उन्होंने युवाओं से पर्यावरण-अनुकूल आदतें अपनाने और अपनी सांस्कृतिक जड़ों को सम्मान देने का आह्वान किया।

सहभागिता और संवाद

कार्यक्रम में श्री राकेश कुमार, श्री एम.एस. चौहान (मुख्य तकनीकी अधिकारी), एवं श्रीमती मीनाक्षी पंत (निजी सहायक), आईसीएआर–आईआईएसडब्ल्यूसी उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का समापन एक संवादात्मक सत्र से हुआ, जिसमें छात्रों और अध्यापकों ने जनजातीय संगीत, नृत्य और मौखिक परंपराओं पर अपने विचार साझा किए।
डॉ. बीना जोशी, विभागाध्यक्ष, प्राणीशास्त्र विभाग, और डॉ. संध्या, प्रोफेसर, वानिकी विभाग, ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

सतत विकास लक्ष्यों से जुड़ा संदेश

विचार-विमर्श में यह निष्कर्ष निकला कि पारंपरिक जनजातीय ज्ञान को आधुनिक विज्ञान और तकनीक के साथ जोड़ना ही वर्तमान पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान है।
साथ ही, यह भी संदेश दिया गया कि सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्राप्ति के लिए जनजातीय परंपराओं का संरक्षण और सम्मान अत्यंत आवश्यक है, ताकि विकास समावेशी, नैतिक और पर्यावरणीय रूप से संतुलित बना रहे।

विद्यार्थियों की उत्साही भागीदारी

इस अवसर पर लगभग 120 छात्र-छात्राओं और अध्यापकों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और जनजातीय संस्कृति, प्राकृतिक संसाधन संरक्षण तथा सतत जीवन शैली के आपसी संबंधों की गहन समझ प्राप्त की।