क्षेत्रों में जाड़ों में अपेक्षाकृत ज्यादा तापमान होने से बर्फ के गलने की गति तेज हुई, जिससे बर्फ से ढंके क्षेत्र तेजी से कम हुए। पिछले करीब 20 सालों में राज्य के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जाड़ों के तापमान 0.12 डिग्री सेल्सियस की दर से बढ़े हैं। उत्तरकाशी, चमोली, पिथौरागढ़ और रुद्रप्रयाग जिलों में बर्फ से ढंके क्षेत्र 2000 के मुकाबले 2020 तक 90-100 किलोमीटर तक सिकुड़ गए हैं। जाड़ों में कड़कड़ाती ठंड और बर्फ उच्च हिमालयी क्षेत्र में उगने वाले सेब, आलूबुखारा, आड़ू, खुबानी और अखरोट में फूल आने और उनके बढ़ने के लिए जरूरी होते हैं। अपेक्षाकृत गर्म जाड़े, कम बर्फबारी, सिकुड़ता हिमाच्छादित क्षेत्र कलियों को खिलने में समस्या पैदा कर सकता है, जिससे शीतोष्ण फलों में फूल खिलने और उसकी पैदावार पर प्रभाव पड़ सकता है।
कृषि विज्ञान केंद्र आइसीएआर-सीएसएसआरआई के प्रमुख और वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. पंकज नौटियाल ने कहा, “उच्च गुणवत्ता वाले सेब जैसी पारंपरिक शीतोष्ण फसलों को सुप्त अवधि (दिसंबर-मार्च) के दौरान 1200-1600 घंटों के लिए सात डिग्री सेल्सियस से कम तापमान की आवश्यकता होती है। पिछले 5-10 वर्षों में इस क्षेत्र में जितनी बर्फबारी हुई है, उसकी तुलना में सेब को दो-तीन गुना अधिक बर्फबारी की आवश्यकता है, जिससे फल की गुणवत्ता और उपज खराब हो गई है।’ रानीखेत के एक किसान मोहन चौबटिया ने कहा, ‘‘बारिश और बर्फ कम होने से बहुत ही दिक्कत हो रही है।’ उन्होंने यह भी कहा कि पिछले दो दशकों में अल्मोड़ा में शीतोष्ण फलों का उत्पादन घटकर आधा रह गया है।