रेनबो न्यूज़ इंडिया । 21 मई 2021
RISHIKESH: 93 वर्षीय पर्यावरणविद, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व पद्मभूषण सुंदरलाल बहुगुणा का शुक्रवार की दोपहर निधन हो गया। कोरोना संक्रमित होने के कारण उन्हें बीती आठ मई को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश (एम्स – AIIMS) ऋषिकेश में भर्ती किया गया था।
एम्स के जनसंपर्क अधिकारी हरीश मोहन थपलियाल ने बताया कि उन्हें यहां आईसीयू में लाइफ सपोर्ट में रखा गया था। जानकारी दी गयी कि उनके रक्त में ऑक्सीजन का स्तर बीती शाम से गिरने लगा था। भर्ती कोने के पर चिकित्सक विशेषज्ञ उनकी निरंतर स्वास्थ्य संबंधी निगरानी कर रहे थे। मई २१ शुक्रवार की दोपहर करीब 12 बजे पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा ने अंतिम सांस ली। इस मौके पर उनके पुत्र राजीव नयन बहुगुणा एम्स में ही मौजूद थे। पर्यावरणविद बहुगुणा का अंतिम संस्कार ऋषिकेश गंगा तट पर शुक्रवार को ही पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने पर्यावरणविद् बहुगुणा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त हुए इसे देश की अपूरणीय क्षति बताया है। एम्स के निदेशक प्रोफेसर रविकांत ने उनके निधन पर उन्हें श्रद्धांजलि और कहा कि यह उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश की अपूरणीय क्षति बताया है।
चिपको आंदोलन के प्रणेता, विश्व में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध महान पर्यावरणविद् पद्म विभूषण श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी के निधन का अत्यंत पीड़ादायक समाचार मिला। यह खबर सुनकर मन बेहद व्यथित हैं। यह सिर्फ उत्तराखंड के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण देश के लिए अपूरणीय क्षति है। pic.twitter.com/j85HWCs80k
— Tirath Singh Rawat (@TIRATHSRAWAT) May 21, 2021
उत्तराखंड प्रदेश और देश के साथ-साथ दुनिया में भी प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के बड़े प्रतीक में शुमार सुंदरलाल बहुगुणा ने 1972 में चिपको आंदोलन को धार दी। साथ ही बहुगुणा ने देश-दुनिया को वनों के संरक्षण के लिए भी प्रेरित किया। उनके प्रयासों से चिपको आंदोलन की गूंज समूची दुनिया में सुनाई पड़ी।
बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी पर्यावरण बहुगुणा का नदियों, वनों व प्रकृति से बेहद गहरा जुड़ाव था। वह पारिस्थितिकी को सबसे बड़ी आर्थिकी मानते थे। यही वजह भी है कि वह उत्तराखंड में बिजली की जरूरत पूरी करने के लिए छोटी-छोटी परियोजनाओं के पक्षधर थे। इसीलिए वह टिहरी बांध जैसी बड़ी परियोजनाओं के पक्षधर नहीं थे। इसे लेकर उन्होंने वृहद आंदोलन शुरू कर अलख जगाई थी।
पर्यावरण बहुगुणा का नारा था-‘धार ऐंच डाला, बिजली बणावा खाला-खाला।’ यानी ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पेड़ लगाइये और निचले स्थानों पर छोटी-छोटी परियोजनाओं से बिजली बनाइये। सादा जीवन उच्च विचार को आत्मसात करते हुए वह जीवनपर्यंत प्रकृति, नदियों व वनों के संरक्षण की मुहिम में जुटे रहे। बहुगुणा ही वह शख्स थे, जिन्होंने अच्छे और बुरे पौधों में फर्क करना सिखाया।
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