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हिंदी हमारी राष्ट्रीय अस्मिता और गौरव का प्रतीक है

हिंदी हमारी राष्ट्रीय अस्मिता और गौरव का प्रतीक है

रेनबो न्यूज़ इंडिया * 14 सितम्बर 2021

देवप्रयाग। राजकीय महाविद्यालय देवप्रयाग में राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई देवप्रयाग एवं हिंदी विभाग के संयुक्त तत्वाधान में हिंदी गोष्टी का आयोजन किया गया। हिंदी दिवस पर प्रोफेसर अनिल कुमार नैथानी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी गई। उनके 37 वर्षों के योगदान के साथ विदेशी लेखक पर उनके शोध कार्य एवं शोध पत्रों एवं उच्च शिक्षा में इस क्षेत्र के लोगों प्रेरित करने के लिए याद किया गया।

पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया

संगोष्ठी का उद्घाटन एवं अध्यक्षता महाविद्यालय की प्राचार्य श्रीमती अर्चना धपवाल द्वारा की गई। उन्होंने छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी को अधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया गया था। पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया हालांकि हिंदी को राजभाषा के रूप में चुनना आसान नहीं था। व्योहार राजेंद्र सिन्हा, हजारी प्रसाद द्विवेदी, काका कालेलकर, मैथिलीशरण गुप्त और सेठ गोविंद दास ने इस मुद्दे पर संसद में भी बहस की।

डॉ० रंजू उनियाल ने अपने संबोधन में कहा कि हिंदी विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी सबसे बड़ी भाषा है अब तक 900 हिंदी शब्दों को ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने अपनाया है। हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ० रंजू उनियाल ने अपने संबोधन में कहा कि हिंदी तो भारत में हमेशा से बोली जाती है। इस भाषा में कई साहित्य रचनाएं की गई रामचरितमानस हिंदी की सबसे बड़ी साहित्यिक कृतियों में से एक है, जो वर्तमान में भी समाज का मार्गदर्शन करती है। डॉ० महेशनंद नौरियाल ने अपने संबोधन में हिंदी शब्द की उत्पत्ति पर प्रकाश डाला।

हिंदी भाषा और सांस्कृतिक महत्व के बारे में बताया डॉ० गुरु प्रसाद थपलियाल ने कहा की हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए जागरूकता के साथ यहां हर दिन हर साल हमें अपनी असली पहचान की याद दिलाता हैं और देश के लोगों को एकजुट करता है।

कार्यक्रम के के संचालक एवं राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम अधिकारी डॉ० अशोक कुमार मेंदोला ने कहा हिंदी केवल हमारी मातृभाषा या राष्ट्रभाषा ही नहीं अपितु यह राष्ट्रीय अस्मिता और गौरव का प्रतीक है। भाषा के बिना कोई भी अपनी बात को अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त नहीं कर सकता। भाषा के जरिए जरिए ही विभिन्न प्रकार की संस्कृतियों को जाना जा सकता है। डॉ० मेंदोला ने अपने पूर्व सहयोगी स्वर्गीय डॉक्टर अनिल कुमार नैथानी द्वारा महाविद्यालय में दिए गए योगदान हिंदी क्षेत्र में किए गए कार्य एवं क्षेत्र के लिए योगदान के लिए याद किया।

इस अवसर पर डॉ० मोहम्मद इलियास, डॉ० प्राची फर्त्याल, डॉ० पारुल रतूड़ी, डॉ० कृष्ण चंद्र, डॉ० सोनिया, डॉ० प्रियंका, डॉ० मोहम्मद तौफीक, नीतू चौहान, सुरेंद्र दत्त बिजलवान, शौकीन सजवान, अर्जुन एवं छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।

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