रेनबो न्यूज़ इंडिया* 5 दिसंबर 2021
दुनिया की सबसे प्रभावशाली सिलिकॉन वैली कंपनियों के शीर्ष पदों पर भारतीयों का दबदबा बढ़ता जा रहा है। अपने देश में हर क्षेत्र में कड़ी प्रतिस्पर्धा के बाद बेहतर अवसर की तलाश में अमेरिका जाने वाले भारतीय समुदाय की आबादी भले ही वहां की कुल आबादी का एक प्रतिशत हो, लेकिन अपनी मेहनत, प्रतिभा, अनुभव, और काम के प्रति समर्पण के दम पर वे दुनियाभर के पेशेवरों पर भारी पड़ते हैं। ऐसे लोगों की फेहरिस्त में नया नाम पराग अग्रवाल का है, जिन्हें ट्विटर का नया सीईओ नियुक्त किया गया है।
कौन जानता था कि राजस्थान के अजमेर की धान मंडी में रहनेवाले परिवार का बेटा एक दिन धन के भंडार का मालिक होगा। आधिकारिक जानकारी के अनुसार पराग को दस लाख डॉलर का सालाना वेतन मिलेगा और ‘‘फाइव फिगर’’ के वेतन से संतोष करने वाला एक आम भारतीय जब इस रकम को रुपये में तब्दील करेगा तो उसमें इतने जीरो होंगे कि गिनना मुश्किल होगा।
पराग अग्रवाल का जन्म 21 मई 1984 को राजस्थान के अजमेर शहर के सरकारी जवाहरलाल नेहरू अस्पताल में हुआ था। उनके पिता रामगोपाल अग्रवाल नौकरी के सिलसिले में मुंबई चले गए। पराग ने अटामिक एनर्जी स्कूल नं-4 से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद वर्ष 2000 में जेईई परीक्षा में देशभर में 77वां स्थान हासिल किया और वर्ष 2005 में आईआईटी मुंबई से कंप्यूटर साइंस में बी.टेक की डिग्री हासिल की। इसके बाद वह स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी से कप्यूटर साइंस में पीएचडी करने अमेरिका चले गए।
वह पढ़ाई पूरी करने के बाद वर्ष 2011 में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर ट्विटर से जुड़े और साल दर साल सफलता की नयी इबारत लिखते रहे। उनकी प्रतिभा और काम के प्रति समर्पण को देखते हुए उन्हें 2017 में कंपनी का सीटीओ अर्थात मुख्य प्रौद्योगिकी अधिकारी बनाया गया और चार साल बाद वह जैक डोर्सी के इस्तीफे के बाद कंपनी के सीईओ अर्थात मुख्य कार्यकारी अधिकारी बनाए गए।
पराग सहित भारत में जन्मे सिलिकॉन वैली के सीईओ 40 लाख की आबादी वाले अल्पसंख्यक भारतीय समुदाय का हिस्सा हैं, जो अमेरिका के सबसे धनी और सबसे ज्यादा पढ़े लिखे समुदायों में शुमार किए जाते हैं। गिनती की बात करें तो इनमें से लगभग 10 लाख वैज्ञानिक और इंजीनियर हैं और अमेरिका सरकार विदेशियों को अपने देश में काम का अधिकार देने के लिए जो वर्क परमिट जारी करती है, उनमें से 70 प्रतिशत भारतीयों के पास हैं।
पराग की सफलता की यह कहानी कहने को भले एक दशक का सफर हो, लेकिन इसने पराग को सत्या नाडेला, सुंदर पिचाई और शांतनु नारायण जैसे दर्जन भर भारतीय पेशेवर दिग्गजों की श्रेणी में ला खड़ा किया है।
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