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एड्स की रोकथाम एवं जागरूकता में युवाओं का योगदान कार्यशाला का आयोजन

एड्स की रोकथाम एवं जागरूकता में युवाओं का योगदान कार्यशाला का आयोजन

विश्व एड्स दिवस के अवसर पर उत्तराखंड विश्वविद्यालय के ऋषिकेश कैंपस में राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई एवं रेड रिबन क्लब द्वारा कार्यशाला का आयोजन

ऋषिकेश श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के पंडित ललित मोहन शर्मा कैंपस ऋषिकेश में राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई एवं रेड रिबन क्लब द्वारा विश्व एड्स दिवस के अवसर पर एड्स की रोकथाम एवं जागरूकता में युवाओं का योगदान विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला का उद्घाटन महाविद्यालय प्राचार्य प्रोफेसर पंकज पंत द्वारा की गई। 

प्राचार्य ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि पिछले कई वर्षों से एड्स और एचआईवी को लेकर लोगों में जागरूकता पैदा करने के प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन फिर भी विडम्बना है कि बहुत से लोग इसे आज भी छुआछूत से फैलने वाला संक्रामक रोग मानते हैं। एड्स तथा एचआईवी के संबंध में यह जान लेना बेहद जरूरी है कि इस संक्रमण के शिकार व्यक्ति के साथ हाथ मिलाने, उसके साथ भोजन करने, स्नान करने या उसके पसीने के सम्पर्क में आने से यह रोग नहीं फैलता। 

कार्यशाला में उपस्थित मुख्य अतिथि प्रोफ़ेसर दिनेश चंद गोस्वामी कला संकाय अध्यक्ष ने संबोधित करते हुए कहा इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति का उपहास उड़ाने की कोशिश भी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह असुरक्षित यौन संबंधों के अलावा संक्रमित सुई, खून और अजन्मे बच्चे को उसके मां से भी हो सकता है। 

विषय विशेषज्ञ के रूप में उपस्थित वरिष्ठ प्राध्यापक वनस्पति विज्ञान प्रोफेसर विद्याधर पांडे ने अपने संबोधन में कहा यह बीमारी कितनी भयावह है, यह इसी से समझा जा सकता है कि एड्स की वजह से दुनियाभर में हर साल लाखों लोग काल का ग्रास बन जाते हैं। हालांकि विश्व भर में एड्स के खात्मे के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं किन्तु अभी तक किसी ऐसे इलाज की खोज नहीं हो सकी है, जिससे एड्स के पूर्ण रूप से सफल इलाज का दावा किया जा सके।

विषय विशेषज्ञ के रूप में उपस्थित जंतु विज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर राकेश कुमार ने यूएसए में किए  एड्स विषय पर अपने शोध कार्य एवं पीपीटी के माध्यम से छात्रों को संबोधित करते हुए कहा यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में एड्स पीड़ित सर्वाधिक संख्या किशोरों की है, जिनमें से दस लाख से भी अधिक किशोर दुनिया के छह देशों दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, केन्या, मोजांबिक, तंजानिया तथा भारत में हैं। शारीरिक संबंधों द्वारा 70-80 फीसदी, संक्रमित इंजेक्शन या सुईयों द्वारा 5-10 फीसदी, संक्रमित रक्त उत्पादों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया के जरिये 3-5 फीसदी तथा गर्भवती मां के जरिये बच्चे को 5-10 फीसदी तक एचआईवी संक्रमण की संभावना रहती है।  सुखद तथ्य यह है कि एंटीरेट्रोवायरल उपचार पद्धति को अपनाए जाने के बाद एड्स से जुड़ी मौतों का आंकड़ा साल दर साल कम होने लगा है। 

कार्यशाला में उपस्थित अंग्रेजी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर हेमंत शुक्ला ने एनएसएस के महत्व एवं एनएसएस द्वारा लोगों को एड्स के प्रति जागरूक करने को कहा।  

संगोष्ठी के कन्वीनर एवं वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी डॉ० अशोक कुमार मेंदोला ने अध्यक्ष एवं सभी अतिथि एवं विषय विशेषज्ञों का आभार व्यक्त करते हुए कहा आज के समय जरूरत इस बात की है कि सरकार इस दिशा में अपना नजरिया बदलें ताकि एड्स जैसी महामारी से मुकम्मल तरीके से मोर्चा लिया जा सके। ज्यादातर मामलों मे एचआईवी संक्रमण होने पर उन्हें घर छोड़ने को कह दिया जाता है। पत्नियों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने एचआईवी पॉजिटिव पति का साथ निभाएं लेकिन पति कम ही मामलों में वफादार साबित होते हैं। इस तरह की समस्याओं के प्रति नजरिया बदलने की जरूरत है। क्योंकि यह सुखद संदेश है कि लोगों में जागरूकता और प्रयास से संक्रमित मामलों में कमी आ रही है। 

मंच का संचालन कार्यशाला की ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी एवं कार्यक्रम अधिकारी डॉ० प्रीति खंडूरी द्वारा किया गया।  उन्होंने अपने संबोधन में कहा एचआईवी के लक्षण बेहद सामान्य से हैं, जिन्हें लोग नजरअंदाज कर देते हैं। एड्स में लगातार तेज बुखार, हमेशा थकान व नींद आना, भूख में कमी, रात में सोते समय पसीना आना, दस्त लगना व वजन में कमी होना इसके प्रमुख लक्षण हो सकते हैं। इस संक्रमण की स्थिति में त्वचा पर चक्कते भी पड़ सकते हैं तथा ग्रंथियों में सूजन आ सकती है। किसी व्यक्ति को अगर खुद के एचआइवी संक्रमित होने का शक हो और ऐसे लक्षण भी दिखें तो उसे एचआइवी संक्रमण की जांच जरूर करा लेनी चाहिए। इस कार्यशाला में 184  स्वयंसेवियों ने प्रतिभाग किया।

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